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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव सयोग (शुक्ल |14 (क्षायिक भाव 9, | 31 (ज्ञान 3, कुज्ञान 2, केवली |लेश्या, दानादि असिद्धत्व, जीवत्व, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि
4 क्षायिक भव्यत्व, मनुष्य गति, 5, क्षायो. सम्यक्त्व, लब्धि, शुक्ल लेश्या) कषायब, लिंग 3, लेश्या मनुष्यगति,
5, मिथ्यादर्शन, क्षायिक चारित्र,
असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व,
अभव्यत्व, तिर्यंच गति) भव्यत्व)
वेगुव्वे णो संति हु मणपज्जुवसमसरागदेसजमं । खाइयसम्मत्तूणाखाइयभावाय तिरियमणुयगदी॥83।। वैगूर्वे नो सन्ति हि मनःपर्ययशमसरागदेशयमाः ।
क्षायिकसम्यक्त्वोनाः क्षायिकभावाश्च तिर्यग्मनुजगती ॥ अन्वयार्थ :- (वेगुव्वे) वैक्रियिक काययोग में (हि) निश्चय से (मणपज्जुवसमसरागदेसजम) मनः पर्ययज्ञान, उपशम चारित्र, सराग चारित्र, देशचारित्र, (तिरियमणुयगदी) तिर्यंचगति, मनुष्यगति, (खाइयसम्मत्तूणा खाइयभावाय) क्षायिक सम्यक्त्व को छोड़कर शेष क्षायिक भाव (णो) नहीं (संति) होते हैं। स्पष्टीकरण के लिए निम्नलिखित संदृष्टि देखें।
संदृष्टि नं. 50
वैक्रियिक काययोग भाव (39) वैक्रियिक काय योग में 39 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, कुज्ञान 3, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, क्षायो. सम्यक्त्व, नरक गति, देवगति, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान आदि के चार होते हैं -
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