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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
थोवं ति न पुढे न कहियं व गूढेहिं नायरो व कओ। इय छलिओ वि न लग्गइ, सुओवउत्तो असढभावो ॥ २४॥ आहाकम्मपरिणओ, बज्झइ लिंगि व्व सुद्धभोई वि। सुद्धं गवेसमाणो, सुज्झई खवगुव्व कम्मे वि॥ २५ ॥ नणु मुणिणा जं न कयं, न कारियं नाणुमोइयं तं से। गिहिणा कडमाइयओ, तिगरणसुद्धस्स को दोसो? ॥ २६ ॥ सच्चं तह वि मुणंतो, गिण्हंतो वड्डए पसंगं से। निद्धंधसो य गिद्धो, न मुयई सजियं पिं सो पच्छा ।। २७॥ उद्देसियमोहविभागओ य ओहे सए जमारं भे। भिक्खाउ कइवि कप्पइ, जो एही तस्स दाणट्ठा ॥ २८॥ बारसविहं विभागे, चउहुद्दिटुं कडं च कम्मं च। उद्देस-समुद्दे सा-देस-समाएस-भे एणं ॥ २९ ॥ जावंतियमुद्देसं, पासंडीणं भवे समुद्देसं । समणाणं आएसं, निग्गंथाणं समाएसं ॥ ३० ॥ संखडिभुत्तुव्वरियं, चउण्हमुद्दिसइ जं तमुद्दिष्टुं । वंजणमीसाइ कडं, तमग्गितयवियाइ पुण कम्मं ॥ ३१॥ उग्गमकोडिकणेण वि, असुइलवेणं व जुत्तमसणाई। सुद्धं पि होइ पूई, तं सुहुमं बायरं ति दुहा ॥ ३२॥ सुहुमं कम्मियगंधऽग्गिधूमबप्फेहि तं पुण न दुटुं। दुविहं बायरमुवगरणभत्तपाणे तहिं पढमं ॥ ३३ ॥ कम्मियचुल्लियभायणडोवठियं पूइ कप्पइ पुढो तं। बीयं कम्मियवग्घारहिंगुलोणाइ जत्थ छुहे ॥ ३४ ॥ कम्मियवेसण धूमियमहव कयं कम्मखरडिए भाणे। आहारपूइ तं कम्मलित्तहत्थाइ छिक्कं च॥ ३५ ॥ पढमे दिणम्मि कम्म, तिन्निउ पूइकयकम्मपायघरं । पूइ तिलेवं पिढरं, कप्पइ पायं कयतिकप्पं ॥ ३६ ।।
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