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१२ ॥
होइ ।
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साहम्मियस्स पवयणलिंगेहि कए कयं हवइ कम्मं । पत्तेयबुद्ध-निण्हय-तित्थयरट्ठाइ पुण कप्पे ॥ पडिसेवण - पडिसुणणा, संवासऽणुमोयणेहिं तं इह तेणरायसुय- पल्लि रायदुद्वेहिं दिट्ठता ॥ १३ ॥ सयमन्त्रेण च' दिन्नं, कम्मियमसणाइ खाइ पडिसेवा । दक्खिन्नादुवओगे, भणिओ लाभुत्ति पडिसुणणा ॥ १४ ॥ संवासो सहवासो, कम्मियभोइहिं तप्पसंसाओ । अणुमोयणत्ति तो ते तं च चए तिविहतिविहेणं ॥ १५ ॥ वंतुच्चारसुरागोमंससममिमंति तेण तज्जुत्तं । पत्तं पि कयतिकप्पं, कप्पइ पुव्वं करिसघट्टं ॥ १६ ॥ कम्मग्गणेऽइक्कमवइक्कमा तह ऽइयारऽणायारा । आणाभंगऽणवत्था, मिच्छत्तविराहणा य भवे ॥ १७॥ आहाकम्मामंतण-पडिसुणमाणे अइक्कमो होइ । पयभेयाइ वइक्कम, गहिए तइएयरो गिलिए॥ १८ ॥ भुंजइ आहाकम्मं, सम्मं न य जो पडिक्कमइ लुद्धो । सव्वजिणाणाविमुहस्स तस्स आराहणा नत्थि ॥ १९॥ जइणो चरणविघाइत्ति दाणमेयस्स नत्थि ओहेणं । बीयपए जइ कत्थवि, पत्तविसेसे व हुज्ज जओ ॥ २० ॥ संथरणम्मि असुद्धं, दुण्हवि गिण्हंतदिंतयाणऽहियं । आउरदिट्टंतेणं, तं चेव हियं असंथरणे ॥ २१ ॥ भणियं च पंचमंगे, सुपत्तसुद्धऽन्नदाणचउभंगे। पढमो सुद्धो बीए भयणा सेसा अणिट्ठफला ॥ २२॥ देसाणुचियं बहुदव्वमप्पकुलमायरो य तो पुच्छे । कस्स कए केण कयं ?, लक्खिज्जइ बज्झलिंगेहिं ॥ २३ ॥
२. 'चउभंगो' इति पु० बी० ।
१. 'व' सी० बी० ।
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पिण्डविशुद्धिप्रकरणम्
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