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४. पिण्डविशुद्धिप्रकरणम्
जिणंदे |
देविंदविंदवंदियपयारविंदेऽभिवंदिय वोच्छामि सुविहियहियं, पिण्डविसोहिं समासेण ॥ १ ॥ जीवा सुहेसिणो तं, सिवम्मि तं संजमेण सो देहे । सो पिण्डेण सदोसो, सो पडिकुट्ठो इमे ते य॥ २॥ आहाकम्मुद्देसिय, पूईकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए, पाओयरकीयपामिच्चे ॥ ३ ॥ परिअट्टिए अभिहडुब्भिन्ने मालोहडे अ अच्छिज्जे । अणिसिट्ठऽज्झोयरए, सोलस पिण्डुग्गमे दोसा ॥ ४ ॥ आहाऍ वियप्पेणं, जईण कम्ममसणाइकरणं जं । छक्कायारम्भेणं, तं आहाकम्ममाहंसु ॥ ५॥ अहवा जं तग्गाहिं, कुणइ अहे संजमाउ नरए वा । हणइ व चरणायं से, अहकम्म तमायहम्मं वा ॥ ६ ॥ अट्ठवि कम्माई अहे, बंधइ पकरेइ चिणइ उवचिणइ | कम्मियभोई साहू, जं भणियं भगवईऍ फुडं ॥ ७ ॥ तं पुण जं जस्स जहा, जारिसमसणे य तस्स जे दोसा । दाणे य जहा पुच्छा, छलणा सुद्धी य तह वोच्छं ॥ ८ ॥ असणाइचउब्भेयं, आहाकम्ममिह बेंति आहारं । पढमं चिय जइजोग्गं, कीरंतं निट्ठियं च तहिं ॥ ९ ॥ तस्स कड तस्स निट्ठिय, चउभंगो तत्थ दुरिमा कप्पा | फासुकयं रद्धं वा, निट्ठियमियरं कडं सव्वं ॥ १० ॥ साहुनिमित्तं ववियाइ ता कडा जाव तंदुला दुछडा । तिछडा उ निट्ठिया पाणगाइ जहसंभवं नेज्जा ॥ ११॥
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