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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि.
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सत्तट्ठ -अट्ठ - सत्तट्ठ -अट्ठ -बंधु दयुदीर णासंता। तेरससु जीवठाणेसु, सन्निपज्जत्तए ओघो ॥ ११ ॥ एत्तो गइइंदिय-काय-जोय-वेए कसायणाणेसु । संजम-दसण-लेसा-भव-सम्मे सन्नि-आहारे॥ १२ ॥ सुरनरतिरिनरयगई इगबितिचउरिंदिया य पंचिंदी। पुढवी-आऊ-तेऊ-वाउ-वणस्सइ-तसा काया॥ १३ ॥ मणवइकायाजोगा, इत्थी पुरिसो नपुंसगो वेया। कोहो माणो माया, लोभो चउरो कसायत्ति ॥ १४॥ मइसुयओहीमणकेवलाणि मइसुयअनाणविभंगा। सामइयछेयपरिहार-सुहुम-अहखाय-देसजय-अजया॥ १५ ॥ अच्चक्खुचक्खुओही, केवलदसणमओ य छल्लेसा। किण्हा नीला काऊ, तेऊ पम्हा य सुक्का य॥ १६॥ भव्व-अभव्वा खउवसम-खइय-उवसमिय-मीस-सासाणा । मिच्छो य सन्नसन्नी, आहारऽणहार इय भेया॥ १७ ।। सुरनिरए सन्निदुर्ग, नरेसु तइओ असन्निअपजत्तो। तिरियगईए चउदस, एगिंदिसु आइमा चउरो॥ १८॥ बितिचउरिंदिसु दो दो, अंतिम चउरो पणिंदिसु भवंति। थावरपणगे पढमा, चउरो चरमा दस तसेसु॥ १९ ॥ विगलतिअसन्निसन्नी, पज्जत्ता पंच होंति वइजोगे। मणजोगे सन्निको, पुमित्थिवेए चरम चउरो॥ २० ॥ काओगिनपुंसकसायमइसुयअनाणअविरयअचक्खू। आइतिलेसा भव्वियरमिच्छ आहारगे सव्वे ॥ २१॥ मइसुयओहिदुगविभंगपम्हसुक्कासु तिसु य सम्मेसु।
सन्निम्मि य दो ठाणा, सन्निअपज्जत्तपज्जत्ता ॥ २२ ॥ १. 'अक्खाय' इति मु०। २. 'सासाणा' मू० 'अ' प्रतौ तथा श्री हरिभद्रसूरि - श्रीयशोभद्रसूरीभ्यां एतत्पाठानुसारेणैव व्याख्यातम्। ३. 'सन्नि सन्नी' इति मू०।
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