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आभार
मूल ग्रंथों की हस्तलिखित प्रतियाँ संकलन करने, समीक्षात्मक अध्ययन लिखने, विचार-विमर्श करने आदि में आगम प्रभाकर मुनिपुंगव स्व० श्री पुण्यविजयजी महाराज, स्व० आशुकवि उपाध्याय श्री लब्धिमुनिजी म०, स्व० अनुयोगाचार्य श्री बुद्धिमुनिजी म०, स्व० श्री रमणीकविजयजी महाराज, स्व० श्री अगरचंदजी नाहटा, स्व० श्री भंवरलालजी नाहटा, श्रद्धेय डॉ० फतहसिंहजी, डॉ० बद्रीप्रसाद पंचोली आदि विद्वानों का मुझे समयसमय पर सहयोग तथा परामर्श प्राप्त होता रहा । अतः इन सब का मैं उपकृत हूँ। साथ ही जिन लेखकों की कृतियों का मैंने इस ग्रंथ में उपयोग किया हैं उन लेखकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ ।
पूज्य प्रवर आगमवेत्ता श्री जम्बूविजयजी महाराज का उपकार मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ, उन्हीं की सतत प्रेरणा और सहयोग से यह ग्रन्थावलि प्रकाशित हो रही है। सतत सहयोग और प्रेरणा ही नहीं अपितु इस पुस्तक का पूर्णरूपेण संशोधन करके मुझे कृतार्थ किया है। अतः मैं उनके प्रति श्रद्धावनत हूँ ।
श्री डी०आर० मेहता, संस्थापक, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, टस्ट्री, श्री सिद्धि भुवन मनोहर जैन ट्रस्ट, अहमदाबाद, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर और मँजुल जैन, मैनेजिंग ट्रस्टी, श्री एम०एस०पी०एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ कि इन चारों ट्रस्टों के संयुक्त प्रकाशन से यह ग्रंथ पाठकों के कर-कमलों में प्रस्तुत किया जा रहा है।
अन्त में, मेरे परमपूज्य गुरुदेव खरतरगच्छालङ्कार गीतार्थ - प्रवर आचार्य श्रेष्ठ स्व० श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के वरद आशीर्वाद का ही प्रताप है कि मेरे जैसा पाषाण तुल्य व्यक्ति जिनवल्लभसूरि जैसे युगप्रवरागम आचार्य पर प्रस्तुत पुस्तक लिख सका। काश! आज वे विद्यमान होते और मेरी इस कृति 'वल्लभ-भारती' को देखते तो न जाने उन्हें कितना हर्ष होता !
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प्रस्तावना
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