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भी दिये जाएँ तो अधिक शोभाजनक होगा। मैंने पूज्यश्री के इस सुझाव को भी अंगीकार किया और पुस्तक के प्रारम्भ में ग्रंथगत चित्र काव्यों के १० पृष्ठों में ४३ चित्र भी दिये हैं तथा अन्त में अनेक परिशिष्ट दिये हैं, जो निम्न हैं:
परिशिष्ट १ - इसमें आचार्य जिनवल्लभसूरि रचित समस्त ग्रंथों में प्रयुक्त छन्दों की अनुक्रमणिका दी गई है। परिशिष्ट २ - इसमें समस्त कृतियों के प्रारम्भ के पद्यों की अकारानुक्रमणिका दी गई है, जो कि शोध-विद्वानों के लिए विशेष उपयोगी होगी।
परिशिष्ट ३ - आचार्य जिनवल्लभसूरि रचित महावीरस्वामीस्तोत्र जो कि भावारिवारण स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध है, उसके अन्तिम चरण की पादपूर्ति स्वरूप महोपाध्याय श्री पुण्यसागरजी के शिष्य वाचनाचार्य श्री पद्मराजगणि ने महावीरस्तोत्र के नाम से रचना की है, वह स्तोत्र दिया गया है। परिशिष्ट ४ - युगप्रधान दादा जिनदत्तसूरि रचित गणधरसार्द्धशतक, सुगुरुपारतन्त्र्य स्तोत्र, चर्चरी और श्रुतस्तव कृतियों में आचार्य जिनवल्लभसूरि का श्रद्धापूर्वक जो गुणवर्णन किया है, वे पद्य दिये गये हैं।
परिशिष्ट ५ - षष्टिशतक ग्रन्थ के प्रणेता और द्वितीय श्री जिनेश्वरसूरि के पिता श्री नेमिचन्द भण्डारी ने श्री जिनवल्लभसूरि के गुण-गौरव को प्रकट करने वाले जो पद्य लिखे हैं, वे दिये गये हैं। परिशिष्ट ६ - आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरि, श्री धनेश्वरसूरि, श्री यशोभद्रसूरि, आचार्य श्री मलयगिरि, आचार्य श्री जिनपतिसूरि, जिनपालोपाध्याय, श्री अभयदेवसूरि, संघतिलकसूरि आदि जैन समाज के धुरंधर ५१ आचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में श्री जिनवल्लभसूरि की गुण-गाथा को प्रकट करने वाले जो स्तुत्यात्मक पद्य लिखे हैं, वे प्रस्तुत किये गये हैं।
प्रस्तावना
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