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इस प्रति से निम्नांकित स्तोत्र संपादित किए गए हैं - २५, २६, २७, ३६, ३४, ३७, ३८, ३९ । स्वाध्याय पुस्तिका, अभयसिंह ज्ञान भंडार, बीकानेर, पोथी १६, प्रति २१८, पत्र सं० २३०, लेखन १५वीं शती, सुंदर और शुद्ध । २५ व ३६ संख्यात्मक स्तोत्र सम्पादित । स्वाध्याय पुस्तिका, अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर, ले० १५वीं शती,
शुद्ध। प्रकाशन का इतिहास
जिनवल्लभसूरि के साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन होने के कारण ही मैंने इस पुस्तक का नाम 'वल्लभ-भारती' रखा है। यह पुस्तक दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में आचार्यश्री का जीवन-चरित्र, आक्षेप परिहार, आचार्य द्वारा रचित साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन और जिनवल्लभीय साहित्य की परम्परा का आलेखन है। द्वितीय खण्ड में जिनवल्लभसूरि रचित, वर्तमान समय में प्राप्त समग्र साहित्य का पाठभेद एवं टिप्पण के साथ मूल पाठ का सम्पादन है।
इस वल्लभ-भारती का कार्य मैंने सन् १९५२ में आरम्भ किया था। सन् १९६० में श्रद्धेय डॉ० फतहसिंहजी एम०ए०, डी लिट् के निर्देशन में दोनों खण्डों का कार्य पूर्ण होने पर हिन्दी विश्वविद्यालय (हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रयाग की उच्चतम परीक्षा 'साहित्य महोपाध्याय' के लिये मैंने इस ग्रंथ को शोध-प्रबन्ध के रूप में भेज दिया था। शोध-प्रबन्ध के रूप में यह पुस्तक स्वीकृत हुई और सन् १९६१ में सम्मेलन द्वारा मुझे 'साहित्य महोपाध्याय' उपाधि प्राप्त हुई।
सन् १९६२ में द्वितीय खण्ड के प्रकाशन का कार्य भी मैंने प्रारम्भ करवाया था। मूल ग्रंथों के कुछ पृष्ठ भी मुद्रित हो चुके थे, फिर भी संयोगवश व्यवधान आ जाने के कारण आगे मुद्रण कार्य न हो सका और वह आज तक प्रकाशित न हो सका।
प्रस्तावना
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