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वि० संज्ञक । स्व-संग्रह, पो० ३९, प्रति ११, पत्र सं० १२, शुद्धतम,
लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है - "संवद्वह्निगगनमुनींदुवर्षे विशाखाशितामावास्यायां तिथौ सकलगणिगणशिर:कोटीरहीरायमानगणेन्द्रगणि श्री ५ श्री रूपचन्द्रगणिकोकनद गायमाणमुक्तिचन्द्रमुनिना श्रीमेदिनीपुरे शुभं भूयाल्लेखकस्य।" अष्टसप्तति/चित्रकूटीयवीरचैत्यप्रशस्ति यह प्रशस्ति चित्तौड़ के वीर-चैत्य में शिलापट्ट पर उत्कीर्ण की गई थी किन्तु आज यह प्राप्त नहीं है। इसकी एकमात्र प्रतिलिपि हस्तलिखित प्रति के रूप में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद, पू० मुनि श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में ग्रन्थाङ्क ७९३ पर प्राप्त है। लेखन बहुत अशुद्ध है। इसका संशोधन पूज्य प्रवर श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज ने किया है अतः मैं उनका आभारी हूँ। चित्रकूटीयपार्श्वचैत्यप्रशस्ति - इस प्रशस्ति का एक शिला खण्ड पुरातत्त्व एवं संग्राहलय, चित्तौड़ में सुरक्षित है, उसी के आधार से
यहाँ पाठ दिया गया है। १६-२०. चरित्रपंचक मु० संज्ञक । 'सिरिपयरणसंदोह' में मुद्रित । अ० संज्ञक । अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर, स्वाध्याय पुस्तिका, लेखन
१५वीं शती, शुद्धतम, पत्र सं० १२२-१२९। संज्ञक । अभयसिंह ज्ञान भंडार बीकानेर, स्वाध्याय पुस्तिका, पो०
१६, प्रति २१८, पत्र सं० २३०, ले० १५वीं शती। ह० संज्ञक । अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर, स्वाध्याय पुस्तिका, ले०
१६वीं शती, शुद्ध, पत्र सं० २१७-२२३ ।
१५.
ब०
प्रस्तावना
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