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________________ प्रति-परिचय वल्लभ-भारती द्वितीय खंड के सटिप्पण संपादन में आचार्य जिनवल्लभसूरि के समग्र ग्रंथों का संशोधन, पाठभेद और टिप्पण आदि निम्नलिखित हस्त-लिखित एवं मुद्रित ग्रंथों के आधार पर किया गया है:१. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार मूलादर्श संज्ञक । स्व-संग्रह, पत्र संख्या २६, शुद्धतम, लेखन प्रशस्ति - सं० १४५३ वर्षे । फा । शु । १३ गुरु, पाटण मध्ये। मुद्रित संज्ञक । आचार्य धनेश्वरसूरि रचित टीका सह, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित। आगमिकवस्तुविचारसार मूलादर्श संज्ञक । स्व-संग्रह, पत्र संख्या २६, शुद्धतम, लेखन प्रशस्ति - सं० १४५३ वर्षे । फा । शु । १३ गुरु, पाटण मध्ये। संज्ञक । जैन आत्मानन्द समा, भावनगर से सटीकाश्चत्वारः कर्मग्रंथाः नाम से मुद्रित । संज्ञक । अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर की है। १५वीं सदी की लिखित है। पत्र संख्या ३५०-३४७ तक। बी० - संज्ञक । अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर की है। १६वीं शती की लिखित है। पत्र संख्या १६८-१७३ तक है। इस प्रति में प्रक्षेपित गाथाओं का बाहुल्य है। सर्वजीवशरीरावगाहनास्तव श्री अगरचंदजी नाहटा, बीकानेर लिखित प्रेसकॉपी के आधार से। पिंडविद्धिप्रकरण संज्ञक । आगमप्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज, अहमदाबाद के संग्रह की १६वीं शती की लिखित शुद्धप्रति । प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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