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४२. स्तम्भन-पार्श्वनाथस्तोत्रम् - श्री अभयदेवसूरि स्थापित एवं प्रतिष्ठित स्तम्भन पार्श्वनाथ का यह स्तोत्र १० पद्यों में निर्मित किया गया है। १ से ९ पद्य चित्र काव्यों में निर्मित हैं। प्रथम पद्य में ही प्रतिज्ञा की है कि स्तम्भनपुर में स्थित भगवान पार्श्वनाथ की शक्ति, शूल, बाण, मूसल, हल, वज्र, तलवार, धनुष और चक्र चित्रों में गुम्फित चित्र काव्य द्वारा स्तुति कर रहा हूँ। इस स्तोत्र में कवि की अपूर्व चित्रालंकार योजना का वैशद्य प्रकट होता है। चित्र काव्यों में रचना करना अत्यन्त कठिन कार्य है। इस स्तोत्र को और प्रश्नोतरैकषष्टिशतक काव्य के चित्रों का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट प्रतिभासित होता है कि लेखक इसमें भी सिद्धहस्त कवि था। ४३. स्तम्भन-पार्श्वनाथस्तोत्रम् - यह अष्टक स्तोत्र है। शार्दूलविक्रीडित छन्द में रचना की गई है। आठवां पद्य चक्र काव्य में निर्मित है। इस पद्य के प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण का सातवां अक्षर तेरहवां अक्षर और प्रथम, द्वितीय चरण का तीसरा अक्षर ग्रहण करने पर जिनवल्लभगणिना कवि का नाम गुम्फित है। स्थान-स्थान पर मूल प्रति में इसके अक्षर भी खण्डित है।
यह आठों स्तोत्र अद्ययावधि अप्रकाशित है और श्री जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जैसलमेर में प्राप्त हैं। ४४. सरस्वती-स्तोत्रम् - जैन-साहित्य में जिनेश्वर देव की वाणी ही श्रुतदेवता या सरस्वती कहलाती है। वह अन्य देवियों की तरह कोई स्वतन्त्र शक्ति नहीं है। यही कारण है कि स्वतन्त्र रूप से 'सरस्वती' पर स्तोत्रसाहित्य नहीं मिलता। प्राचीन जैन ग्रंथकारों ने ग्रंथारंभ में प्रायः सरस्वती का स्मरण अवश्य किया है किन्तु जिनवाणी के रूप में ही।
आचार्य जिनवल्लभ ने इसी सरस्वती को स्वतन्त्र रूप से स्वीकार कर इस स्तोत्र की रचना की है। इन्हीं के चरण-चिह्नों पर चल कर परवर्ती कवियों ने इसको सरस्वती देवी के रूप में स्वीकार किया है। इसी के पश्चात् सरस्वती देवी की मूर्तियों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ। युगप्रवरागम जिनपतिसूरि
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