________________
भी उल्लेख किया है - सूत्रों के अनुसार २०, वृत्तियों की दृष्टि से ५२, राजधानियों के विचार से १६ तथा मतान्तर से ३२ जिनेश्वरों को नमस्कार करता है जो नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यों में विराजमान बतलाये गये हैं। यह कृति भी प्राकृत भाषा में है। २५. सर्वजिनपञ्चकल्याणक-स्तोत्र - इस स्तोत्र में कवि ने २४ तीर्थंकरों के सामान्यतया पाँचों कल्याणकों अर्थात् १२० कल्याणकों के समय का वर्णन मास-तिथि आदि पूर्वक २६ आर्याओं में किया है। यथा - कार्तिक, कृष्णा ५ को संभवनाथ केवलज्ञान, कार्तिक कृष्णा १२ को पद्मप्रभ जन्म और नेमिनाथ का च्यवन, कार्तिक कृष्णा १३ को पद्मप्रभ की दीक्षा, कार्तिक कृष्णा १५ को महावीर का निर्वाण। यह कृति सिरिपयरणसंदोह में प्रकाशित है। २६. सर्वजिनपञ्चकल्याणक-स्तोत्र - मदनावतार नामक मात्रिक छन्द में ग्रथित सामान्य रूप से (अर्थात् जिसमें किसी तीर्थंकर विशेष का नाम न लिया गया हो उसे सामान्य कहते हैं) समग्र तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण इन पाँच कल्याणकों का गुणगौरव और अतिशयों का वर्णन इसमें किया गया है। नामानुरूप मदनावतार की गेयता इसमें परिपूर्णरूप से लक्षित होती है। यह कृति अप्रकाशित है। २७. महाभक्तिगर्भा सर्वज्ञविज्ञप्तिका - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें सर्वज्ञ-जिनेश्वरों की सेवा में कवि ने अत्यन्त ही भक्ति से ओतप्रोत एक विज्ञप्ति की है। कवि सांसारिक भव-बन्धनों से, जन्म, जरा, मरण, दुःख, शोक आदि से त्रस्त होकर सर्वज्ञ-जिनेश्वरों के अपरिमित एवं अनन्त गुणों का संस्मरण करता हुआ तथा उनके सन्मुख अपने अवगुणों की स्पष्ट रूप से निन्दा, गर्दा और प्रायश्चित्त करता हुआ दृष्टिगत होता है। उसकी प्रार्थना है कि भगवान् उसे सम्यक्त्व (बोधि) प्रदान करते हुए शिवनगरी का मार्ग शीघ्र बतायें। इसकी भाषा प्राकृत और इस विज्ञप्ति में ३७ आर्याओं के अतिरिक्त अन्तिम छन्द वसन्ततिलका है।
प्रस्तावना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org