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________________ इसकी एक मात्र प्रति पहले विजय धर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर, आगरा में प्राप्त थी। २३. चतुर्विंशति-जिन-स्तोत्राणि - इसमें कवि ने प्रत्येक तीर्थंकर की जीवन के १५ प्रसंगों का उल्लेख बड़ी सफलतापूर्वक किया है। पद्यों की कुल संख्या १४५ है, जिसमें अन्तिम पद्य कविनाम गर्भित उपसंहार का है। इसकी भाषा प्राकृत और छन्द आर्या है। वस्तुतः चरित्र षट्कान्तर्गत ६३ प्रसंगों और इस स्तोत्र के अन्तर्गत १५ विषयों का आश्रय लेकर परवर्ती कवियों ने 'सप्ततिशतस्थानक प्रकरण' आदि ग्रंथों की रचना की है। श्वेताम्बर जैन-साहित्य में इस प्रकार की तथा पंचकल्याणक गर्भित स्तोत्रादि कृतियों के प्रादुर्भाव का श्रेय सर्वप्रथम आचार्य जिनवल्लभ को ही है। इस स्तोत्र में वर्णित १५ विषय को निम्नलिखित पद्धति से दर्शाया गया है। २४ तीर्थंकरों के - च्यवन स्थान, तिथि, जन्मभूमि, जन्मतिथि, शरीरवर्ण, राशि, दीक्षातप, दीक्षापरिवार छद्मस्थकाल, ज्ञाननगरी, ज्ञानतिथि, दीक्षा पर्याय, आयुष्य, निर्वाणतिथि, निर्वाणस्थान। यह स्तोत्र सिरिपयरणसंदोह में प्रकाशित है। २४. नन्दीश्वरचैत्यस्तव - नन्दीश्वर नामक अष्टमद्वीप में स्थित शाश्वत ५२ जिनालयों और उनमें प्रत्येक चैत्यालयों में स्थित १२४ जिन-प्रतिमाओं का कवि ने भक्ति पुरस्सर वन्दन करते हुए अपनी लघुयोजना शैली द्वारा पच्चीस आर्याओं में आकर्षक वर्णन किया है। कवि के वर्णनानुसार प्रत्येक दिशा में ४ अंजनगिरि, १६ दधिमुखगिरि, ३२ रतिकर पर्वतों के नाम, पुष्करिणीयों के नाम, वन-खण्डों के नाम भी दिये है। प्रत्येक पर्वत पर एक जिनचैत्य है, ४-४ दरवाजें है, चैत्यों में प्रमाणोपेत १२० प्रतिमाएँ है। मणिमय वेदिका पर ऋषभाननादि ४ शाश्वत तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ है। प्रत्येक चैत्य तोरण, ध्वजा, अष्टमंगल तथा पूजादि की समग्र सामग्रियों से आकलित है। १६ राजधानियों के नाम भी दिये हैं। कवि ने उपसंहार करते हुए मतान्तरों का प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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