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वृत्त में है । चरित्रों में घटना बाहुल्य होने के कारण अलंकारों का समावेश नहीं के समान ही है किन्तु विशेषणों में कहीं-कहीं रूपक और उपमा अलंकार अवश्य ही प्राप्त हो जाते है ।
पाँचों चरित्र घटना प्रधान हैं। पाँचों जिनेश्वरों के ६३ घटनाओं का भवसंख्या, च्यवन स्थान, च्यवन स्थिति, च्यवन तिथि, च्यवन नक्षत्र आदि का संक्षेप में वर्णन है । घटनाओं के अतिरिक्त जो विशेष बातों का उल्लेख कवि ने किया है । वे हैं
(१) आदिनाथ चरित में साधु की चिकित्सा से चक्रवर्ती नाम कर्म का उपार्जन और इक्ष्वाकु वंश की उत्पत्ति के कारण का उल्लेख किया है ।
(२) शांतिनाथ चरित में गुप्त गर्भ का और चक्रवर्ती की ऋद्धि का उल्लेख प्राप्त होता है ।
(३) नेमिनाथ चरित में राजमति के त्याग का उल्लेख है।
(४)
(५)
(६)
प्रस्तावना
पार्श्वनाथ चरित में सिर पर सर्पराज की फणाओं का और कमठ नामक तापस को प्रतिबोध देने का उल्लेख है ।
महावीर चरित मरीचि के भव में भगवान् आदिनाथ के मुख से 'मैं भविष्य में वासुदेव, चक्रवर्ती और अंतिम तीर्थंकर महावीर होऊँगा, सुनकर जातिमद करना, ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानंदा की कुक्षि में उत्पन्न होना, ८२ दिवस पश्चात् हरिनैगमेषि नामक देव द्वारा गर्भ परिवर्तन होना, इन्द्रादि देवताओं द्वारा महावीर नाम रखना, दीक्षा ग्रहण के पश्चात् शूलपाणी यक्ष के उपसर्ग, उग्रतपस्यचर्या और केवलज्ञान पश्चात् प्रथम देशना का निष्फल होना आदि का भी विशेष उल्लेख है । '
वीर चरित इसमें सामान्यतया भ० महावीर की स्तुति की गई है और पद्य ८ से ११ तक कर्म की विचित्र गति का सुन्दर चित्रण
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