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________________ अभयदेवसूरि के पास इन्होंने उपसम्पदा ग्रहण की थी । चित्रकूटीय इनके भक्तगण श्रेष्ठियों का भी नामों के साथ उल्लेख प्राप्त होता है । अनेक जैन मन्दिरों से मण्डित चित्रकूट में नवीन विधि चैत्य के निर्माण का उद्देश्य, निर्माण कार्य में विघ्न, तथा कार्य की समाप्ति, महावीर चैत्य की प्रतिष्ठा और उपासकों की धार्मिक प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए नृपति नरवर्म द्वारा प्रति रवि - संक्रान्ति पर पारुत्थ-द्वय देने का संकेत किया है । कवि का स्वर्गवास वि०सं० ११६७ चित्तौड़ में हुआ था । स्वर्गारोहण के ४ वर्ष पूर्व ही अर्थात् वि०सं० ११६३ में उन्होंने इस प्रशस्ति की रचना की । रचना में प्रौढ़ता, प्रांजलता, लाक्षणिकता, चित्रकाव्यात्मकता आदि काव्य के समस्त गुण पदपद पर प्राप्त होते है। इसकी काव्य- गरिमा को देखते हुए इसको लघु काव्य भी कह सकते है । १५. चित्रकूटीय पार्श्वचैत्य - प्रशस्ति जिनवल्लभ गणि के उपदेश से चित्रकूट में महावीर चैत्य और पार्श्वनाथ चैत्य अर्थात् दो विधि - चैत्यों का निर्माण हुआ था और उन दोनों की प्रतिष्ठा जिनवल्लभ गणि ने करवाई थी । कालप्रभाव से मुगल आक्रमणों के कारण दोनों ही मंदिर नष्ट किए गये। आज ध्वंसावशेष भी प्राप्त नहीं है । पार्श्वचैत्य की प्रशस्ति भी धूली - धूसरीत की गई। सौभाग्य से प्रशस्ति का एक शिलाखण्ड गभीरा नदी (चित्तौड़ के पास) में प्राप्त हुआ, जो आज वहाँ के संग्रहालय में सुरक्षित है । — प्रस्तर पर टंकित अष्टदल कमल गर्भित चित्रकाव्य के रूप में आठ श्लोक प्राप्त हैं। इससे इतना ही स्पष्ट होता है कि जिनवल्लभ गणि ने पार्श्वचैत्य की प्रतिष्ठा की थी । १६. - २१. चरित्र - षट्क इस चरित्र षट्क में १. आदिनाथ, २. शान्तिनाथ, ३. नेमिनाथ, ४. पार्श्वनाथ और ५ - ६. महावीर देव - इन छः चरित्रों का संक्षिप्त समावेश है। इसमें पद्यों की संख्या क्रमशः इस प्रकार २५, ३३, १५, १५, ४४ और १५ । ये छहों चरित्र प्राकृत भाषा में हैं और सभी चरित्रों में कवि ने आर्या छन्द का ही प्रयोग किया है । केवल ५वें महावीर - चरित्र में प्रथम पद्य मालिनी वृत्त और अन्तिम पद्य शार्दूलविक्रीडित Jain Education International For Private & Personal Use Only - प्रस्तावना www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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