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जुगपवरागमपीडसपाणपीणियमणा कया भव्वा । जेण जिणवल्लहेणं गुरुणा तं सव्वहा वंदे ॥ १९॥ - सुगुरुपारतन्त्र्य स्तोत्र गा० १५ - १९ नमिवि जिणेसरधम्मह तिहुयणसामियह,
पायकमलु समिनिम्मलु सिवगयगामियह। करिमि जहट्ठियगुणथुइ सिरि जिणवल्लहह,
जुगपवरागमसूरिहि गुणिगणदुल्लहह ॥ १॥ जो अपमाणु पमाणइ छद्दरिसण तण,
परपरिवाइगइंदवियारणपंचमुहु,
जाइ जिव नियनामुन तिण जिव कुवि घणइ ।
परिशिष्ट
तसु गुणवन्नणु करण कु सक्कइ इक्कमुहु ? ॥ २ ॥ जो वायर वियाणइ सुहलक्खणनिलउ,
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सद्दु असद्दु वियाणइ सुवियक्खणतिलउ । सुच्छंदिण वक्खाणइ छंदु जु सुजइमउ,
गुरु लहु लहि पइठावर नरहिउ विजयमउ ॥ ३॥ कव्वु अउव्वु जु विरयइ नवरसभरसहिउ,
लद्धपसिद्धिहिं सुकइहिं सायरु जो महिउ । सुकइ माहुति पसंसहिं जे तसु सुहगुरुहु,
साहु न मुणहि अयाणुय मइजियसुरगुरुहु ॥ ४ ॥ कालिया कइ आसि जु लोइहिं वन्नियइ,
ताव जाव जिणवल्लह कइ नाअन्नियइ | अप्पु चित्तु परियाणहि तं पि विसुद्धनय,
ते वि चित्तकइराय भणिज्जहि मुद्धनय ॥ ५॥ सुकइविसेसियवयणु जु वप्पइराउकइ,
सुविजिणवल्लहपुरउ न पावइ कित्ति कइ ।
अवरि अणेयविणेयहिं सुकइ पसंसियहिं, तक्कव्वामयलुद्धिहिं निच्चु नमंसियहिं ॥ ६॥
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