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परिशिष्ट - ४
आयतनम्:
दंसियमाययणं तेसिं जत्थ विहिणा समं हवइ मेलो।
गुरुपारतंतओ समयसुत्तओ जस्स निप्फत्ती ॥ १०६ ॥ आयतनविधिः
दीसई य वीयराओ तिलोयनाहो विरायसहिएहिं । सेविज्तो संतो हरइ हु संसार संतावं ॥ १०७ ।। वाइयमुवगीयं नट्टमवि सुयं दिट्ठमिट्ठमुत्तिकरं । कीरइ सुसावएहिं सपरहियं समुचियं जत्थ ।। १०८ ॥ रागोरगो वि नासइ सोउं सुगुरूवएसमंतपए। भव्वमणो सालूरं नासइ दोसो वि जत्थाही ॥ १०९ ।। नो जत्थुस्सुत्तजणक्कम त्थि पहाणं बली पइट्ठा य। जइ-जुवइपवेसो वि य न विजइ विज्जइविमुक्को ॥ ११० ॥ जिणजत्ता-हाणाई दोसाण जं खयाइ कीरंति। दोसोदयम्मि कह तेसिं संभवो भवहरो होज्जा ॥ १११ ॥ जा रत्ती जारत्थीणमिह रइं जणइ जिणवरगिहे वि। सा रयणी रयणियरस्स हेऊ कह नीरयाण मया ॥ ११२ ॥ साहू सयणासण-भोयणाइ आसायणं च कुणमाणो। देवह रएण लिप्पइ देवहरे जमिह निवसंतो॥ ११३॥ तंबोलो तं बोलइ जिणवसहिट्ठिएण सो खद्धो। खुद्धे भवदुक्खजले तरइ विणा नेय सुगुरुतरिं ॥ ११४॥ तेसिं सुविहियजइणो य दंसिया जेउ हुंति आययणं । सुगुरुजणपारतंतेण पाविया जेहिं नाणसिरी ॥ ११५ ॥ संदेहकारितिमिरेण तरलियं जेसिं दंसणं नेयं । निव्वुइपहं पलोयइ गुरु-विजुवएसओ सहओ॥ ११६ ॥ निप्पच्चवायचरणा कज्जं साहति जे उ मुत्तिकरं। मन्नंति कयं तं जं कयंतसिद्धं तु सपरहियं ॥ ११७ ॥
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