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________________ इन्दौर में उपलब्ध थी, किन्तु भण्डार के व्यवस्थापकों की असावधानी के कारण आज अनुपलब्ध है। १३. प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतकाव्यम् - विविध छन्दों में गर्भित १६१ श्लोकों की यह रचना होने से 'प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतम्' के नाम से प्रसिद्ध है। यह एक श्लोकबद्ध प्रश्नावली है। इसकी रचना जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा गया है बुधजनों के बोध के लिये ही की गई है। इस प्रश्नावली में जो प्रश्र एकत्र किये गये हैं उससे स्पष्ट है कि उस समय की पण्डित-मण्डली कैसे उच्चकोटि के बौद्धिक मनोविनोदों की अपेक्षा रखती थी, क्योंकि इसमें जहाँ व्याकरण, निरुक्त, पुराण, दर्शन, तथा व्यवहार आदि विविध विषयों को लेकर प्रत्युत्पत्ति तथा प्रतिभा की परीक्षा करने वाली पहेलियाँ हैं, वहाँ सुरुचि, सदाचार तथा सद्धर्म की भी कहीं उपेक्षा नहीं की गई है। कवि के प्रकाण्डपाण्डित्य एवं ज्ञान-गांभीर्य को प्रकट करने वाली विषयों की विविधता के साथ-साथ प्रश्नों में शैलीभेद से होने वाले प्रकारों को भी इसमें भलीभांति दिखाया गया है। प्रश्नों में विषम-भेद और शैलीभेद के अतिरिक्त भाषाभेद भी मनोरंजनकारी है। अधिकांश पद्य शुद्ध संस्कृत में होते हुये भी कहीं-कहीं शुद्ध प्राकृत या मिश्रभाषा का प्रयोग भी हुआ है। कुल १६१ पद्यों के छोटे से काव्य में भी २० छन्दों का प्रयोग, काव्यगत अन्य विविधताओं को देखते हुए कवि के वैविध्यप्रेम का सूचक है। परन्तु इतनी विभिन्नता तथा विविधता होते हुए भी, इस काव्य में भी वे गुण न्यूनाधिक रूप से देखे जा सकते हैं जो कवि के अन्य काव्यों में पाये जाते हैं। इस काव्य की सबसे बडी विशेषता है इसका चित्रकाव्यत्व। जैसा कि परिशिष्ट से ज्ञात होगा। इसमें कुल मिलाकर २८ चित्रों की योजना है, परन्तु यहाँ भी कवि-वैविध्य-प्रेम उसे ८ प्रकार के चित्रों का समावेश करने को बाधित करता है। सामान्यसरलता और सुबोधता होते हुए भी इस काव्य में कहीं-कहीं चित्रकाव्य सुलभ क्लिष्टता भी आ गई है। प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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