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________________ ४२. स्तम्भन-पार्श्वनाथस्तोत्रम् (चित्रकाव्यात्मकम्) शक्ति-शूलेषु-मुसल-हल-वज्रासि-चापिना। स्तुवे चक्रेण चित्रेण श्रीपार्श्व स्तम्भनस्थितम्॥ १॥ नमल्लोकतटे वे बंधो वृजिन वामन। नमस्ते भवभीदंभा-रंभाय नयनक्षम ॥ २॥ शक्तिः नरौघः स्थिरसंलाभ-कांक्षी जिन! जितश्रम!। मदनो नो दमस्थाद दद्यादस्तममस्तव॥ ३॥ शूलम् नश्यन्ति तत्क्षणादेव स्मृत्या तव ततस्तव। वधपापादपापास्तः सद्वो वचननिश्चितम्॥ ४॥ शरः नयनः पार्था भवभी संबाधाल्लघुशाश्वतम्। . तन्द्रालूनभवावासं भीमभक्त्याजिसाहस ॥ ५ ॥ मुसलम् न स पार्श्व! भवारातेः कृतेः क्षोभं स साध्वस। समेति यः करोत्यन्त-स्थां सत्कुल सुशीलज!॥ ६॥ हलम् नन्दन वचसाऽमास्तं ध्वस्तासुगगत व्रज। जगत्तवागमासारो - ब्रूतमज्जज्जनं जिन!॥ ७॥ वज्रम् नमस्कारस्तवाक्षोभ य नाभालि सन्तृ निन।। नमेन्द्रराजवाजय - त्यनल्पनयजल्पक!॥ ८॥ प्रावासहासिः नमन्त जिनभावेन शक्रालीमलनाशक। कल्याणेषु सदा सर्वा समुत्थे मान्यशासन ॥ ८॥ धनुः मदनमदस्तवदनं भक्त्या, सकलजगजनजनकसमान। जिनवल्लभगणिमव भवभीतेः, स्तम्भनकस्थितपार्श्ववर! जिन!॥ १० ॥ इति श्रीस्तम्भनपार्श्वनाथस्तोत्रम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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