________________
३०. स्तम्भनपार्श्वजिनस्तोत्रम्
सिरिभवणथंभणपुरे, सुरेहि महियं हियम्मि निउलयणस्स। उरकड्डियमयणपासं, पासं पलमिज्झ? कइयाऽहं ॥ १॥ कुवलयदलसिरिवच्छं, सच्छसच्छंदकुनयमयदलणं। पासं सुहपडिहत्थं, हत्थं पिच्छिज? कइयाऽहं ॥ २॥ सवलंजलीहि सिरिजिण!, हरिसवसुल्लसिय पुलयकंचुइओ। तुह गिरममयसरिच्छं, कया जहिच्छं पिबिस्समहं? ॥ ३॥ मिउमहुरसुललियपया-सालंकारा सलक्खणसरिसा। महु पहु! तुह गुणधुणणो, कया सुवाया पिया हुज्जा? ॥ ४॥ तुह गुरुभत्तिरसवसा, नेहमुरयलाहिअंगुलियदलिलं । करकमलमउलिमिलियं, मह नाह! [कया] अलंकरिही॥५॥ सठकमठदप्पखंडण!, मंडणवरसयलभुवणभवणस्स। मह मणहरे मणोहरे, वसीहसि? कइया तुमं पास!॥ ६॥ बहुसुहकम्मसमुल्लसिय-जीवविरइओ जहुत्तगुणजुत्तो। तुह सुहसंदोहकरं, वयणं सम्मं कया काहं? ॥ ७॥ विहिसमयगयसुहत्थी, संविग्गो सुविहियविहारी [होउं] । कइयाऽहं वंदिस्सामि?, [पासं] तं थंभणयनयरे ॥ ८॥ इय विमलकेवलालोय-लोयपायडियपहु [प]उण सिवमग्गो। निद्दलियदरियसयलं - ऽतरंगरागाइरिउवग्गो ॥ ९॥ संभवणमित्तनासिय - दुरंतसव्वाहिवाहियसंघे ह!। जहुत्तगुणुक्कित्तण - पडिहयसमग्गसंखोह !॥ १० ॥ सिरिपास! पसिय बहुरोग-सोगदोहग्गभग्गसुहजोगं । कुणसु ममं जिणवल्लह-संपत्तीय सुकयत्थं ॥ ११ ॥
इति स्तम्भनपार्श्वजिनस्तोत्रम्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org