________________
२०४
भत्तभव्वनिव्वाणपावयं, कम्मदारुदहणोरुपावयं । पणयलोयवरकप्पपायवं, नमह तं भवच्छ्रयआयवं ॥ २१ ॥
प्रथमजिनस्तवनम्
दुरियरिउदारणं, कुनयतरुवारणं । सिद्धिसुहकारणं, थुणह दुहतारणं ॥ २२ ॥
मोहतमोहपणासणसूरं, कलिमलहरणविमलजलपूरं । रोगभुयंगमदमणसुमंतं, सुमरह तं नंदिय असुमंतं ॥ २३ ॥
सोंडीरया विजिय- मत्तगयं, गभीरया कयसमुद्दजयं । गुत्तिंदियत्त जियकुम्मुमहं, वंदे निरासयतयाइ नहं ॥ २४ ॥
[पादाकुलक]
अणुवम-अइसय-मणेगणरोहणकय, जय बोहणसव्वलोय - उवयाररय ।
जय दीहर- दुग्गइ पह पत्थिय असुह कइत्थिय बहुजियहिय [य] सिवमग्गदय ॥
Jain Education International
,
पसममंतहयदोसपिसायं परमसंतरसरुद्धविसायं । डमरमारिदरहारविहारं, नमह सिद्धरमणीउरहारं ॥ २५ ॥
For Private & Personal Use Only
[ एकावली ]
[ पद्धतिका ]
[पादाकुलक]
[ पद्धतिका ]
२६॥
तह,
दुइ
माहह ।
बहुलासाढचउत्थि बहुलचित्तट्ठमि इक्कारसि फग्गुणह बहुल सा तेरसि तुह चुइ- जम्मण - दिक्ख-नाण- निव्वाण - जाय जहिं, तच्चिय दिण जिण नियजसेण कालवि महिधवलिहिं ॥ २७ ॥
[क्रीडनक]
[द्विपदी]
www.jainelibrary.org