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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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तिजयपहुत्तणं व तिक्कालिय-नाणसिरि वसाहिउं। तिपयमयं..
........। ववुत्तुमरिबलं पि हु वत्थ तुहोवरिट्ठियं, निम्मलपुन्नचंदपं तित्थ वि छत्तत्तयमुदारयं ॥ १५ ॥
[द्विपदी] कुनयकुमुयसिरिखंडण भूयलमंडण। पडिहयदोसायर पसरियतेयभर ॥ १६ ॥ धम्म दसविहु धम्मु दसविहु तत्तनव, अट्ठमुणिमायर सत्तनय दव्वछच्च पंचय महव्वय, चउ-तिनि-दो-मुक्ख पहु केवल्लिक्कदीवेण अवगय। सयलजइक्कपिय मेहिण लोयहपयडिय जेण, सो परमेसरु पणमियइ, तिक्कालु वि तिविहेण ॥ १७॥
[पंचपदी] तिपयनाणसियवायकन्नियं, नयदलं हेउकेसरनियं। जिणरवितइयसमा निसिअंते, सुयपंकयं वियासिय अंते॥ १८॥
[पादाकुलक] विणयनर-अमरवर-विसर-नरकिन्नरुल्लसिर-सिरिमउडमणिमसिणपयपंकयं । सयलजियसगिरपरिणमिरवयणावलीदलियसमसमयबहुविविहजणसंसयं ॥ १९॥
[मदनावतार] विगयजरमरणथिरपरमपयकारियं, नाणसम्मत्तवरचरणगुणसायरं। धम्ममिय भव्वसत्ताणदेसंतयं, समभिवंदामि नंदामि तं संपयं॥ २०॥ .
[मदनावतार]
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