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________________ ૨૦૨ | जय मोहतिमिरहयसिद्धिसरणि, पायडणपयडतरतरुणतरणि । जय समयमयणकरिवियडगंड- पाडणपंचाणण अइपयंड ॥ ७ ॥ जय निविडनियडिलयपरसुसरिस, अमरिसविसनिरसणअमयविरस । जइ रुद्धविरुद्धविलासहेल, सुहबुद्धिसिन्धुहिमवन्तसेल ॥ ८॥ जय संजमसलिलसयंभुरमण-चलकरणतुरंगमपसरदमण । जय अखिलियसुलक्खणकलियदेह, केवलसिरिनिरुवमवासगेह ॥ ९॥ पुन्ननिम्माण निहयअवमाण प्रथमजिनस्तवनम् Jain Education International [६-९ पादाकुलक] सुररइयसम्माण, पंचधणुसयपमाण ॥ दालिद्दविद्दवण, जय जय जय पणयजंतु गण जय चिंतियत्थसंपायणसमत्थ[वण] ॥ १०॥ जय सग्ग- अपवग्ग-संसग्ग- वरमग्ग, जय भग्गदोहग्ग, सयलग्गसोहग्ग ॥ जय भवभवणपरिचुक्क । सत्तभयमुक्क जय दंत सुपसंत, जय कंत भयवंत ॥ ११॥ भीसणभवदवतवियभवियवणसमणजलहर, गहिर महामुणिमणसमुद्दनंदणछणससहर । निम्मलजच्चसुवन्नवन्न पडिहयमयविसहर, हासुज्जलजस जिस दुरियई मह अवहर ॥ १२ ॥ For Private & Personal Use Only लोहसुजोहमडप्फरु भंजणु, कुसुमयसयरयपलयपहंजणु । जणियसयलजपजणमणरंजणु, जयइ जुयाइजिणिंदु निरंजणु ॥ १३ ॥ उक्कडकोहकंदनिक्कंदणु, सिवपुरगमणपउणवरसंदणु । नाभिनरिंदनयणआणंदणु, वंदहु निरु मरुदेविहि नंदणु ॥ १४ ॥ [ वस्तुवदन काव्य] [१३-१४ पद्धतिका ] www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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