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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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पुव्वेण असोगवणं, दाहिणओ ताण सत्तवनवणं । चंपगवणमवरेणुत्तरेण सव्वाण चूयवणं ॥ १०॥ पल्लसमा जोयणदससहस्सपिहला सहस्समोगाढा। चउसट्ठिसहस्सुच्चा, फलिहमया पुक्खरिणिमझे ॥ ११ ॥ सोलस दहिमुहगिरिणो, अंजणदहिमुहनगोवरितलेसु । जोयणसयदीहतयद्धवित्थडा दुगसयरिमुच्चा ॥ १२ ॥ बहुविविहरूवरूवगविचित्तविच्छित्तिभत्तिसयकलिया। पत्तेयं जिणभवण-तोरण-झय मंगलाइजुया ॥ १३॥ देवासुरनागसुवननामगा नामसम सुरारक्खा । दारा सोलठ्ठठ्ठच्च पिहुलपवेसो य चउरोसिं ॥ १४ ॥ पइदारं कलसाई, मुहमंडव पिच्छमंडवक्खाडा। मणिपीढथूभपडिमा, चिइयतरु झयपुक्खरिणिओ य॥ १५ ॥ अट्ठच्चसोलसाययपिहला मणिपीढिया जिणहरंतो। तदुवरि देवच्छंदा, रयणमया साहियपमाणा ॥ १६॥ तत्थुसह-वद्धमाण-चंदाणण-वारिसे णनामाणं । सासयजिणपडिमाणं, पलियंकनिसन्नमट्ठसयं ॥ १७॥ पइपडिमपुरो दो दो, नागपडिमजक्खभूयकुंडधरा। दुहओ दो चमरधरा, पिढे छत्तधरपडिमेगा॥ १८॥ तह घंटा-चंदण-घड-भिंगारायरिसपाइसुपइट्ठा। पुप्फायणेगचंगेरिपडलछत्तासणाइ इह ॥ १९ ॥ इय सुत्तवुत्तमाएसओ दु पुक्खरणि अंतरे दो दो। रइकरनागा बत्तीस एसु पुव्वं च जिणभवणा ॥ २०॥
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