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नन्दीश्वरचैत्यस्तवः
वंदंत-नमंत-अभिथुणंत-पूइंत-इंतजंतेहिं । खयरसुरेहिं अरहिया पुण्णतिहि महामहिकरेहिं ॥ २१ ॥ तह जोयणसयमुच्चा, विक्खंभायाम सम दससहस्सा। झल्लरिनिभा रइकरा, रयणमया विदिसि दीवंतो॥ २२ ।। तेसिं चउण्हदिसासुं, जोयणलक्खंमि जंबुदीवसमा। अट्ठट्ठ रायहाणी, सक्कीसाणग्गिमहिसीणं ॥ २३ ॥ विमलमणिसालवलयाण ताणमझे पुढो जिणाययणा। जिणपडिमा पुवमिवेह अणुवमा परमपभणिज्जा ॥ २४ ॥ इय वीसं बावन्नं, च जिणहरे गिरिसिरेसु संथुणिमो। इंदाणिरायहाणिसु बत्तीसं सोलस य वंदे॥ २५ ॥
इति नन्दीश्वरचैत्यस्तवः। कृतिरियं प्रभुश्रीजिनवल्लभसूरिभिः
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