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२४. नन्दीश्वरचैत्यस्तवः
वंदिय नंदियलोयं, जिणविसरं विमलकेवलालोयं । नंदीसरचेइयसंथवेण थोसामि तं चेव ॥ १॥ जोयणकोडिसय-तिसटि-चउरसीलक्खवलयविक्खंभो। अट्ठमदीवो नंदीसरुत्ति सयविलसियसुरोहो ॥ २॥ तब्बहुमज्झे चउरो, दिसासु अंजणगिरी गवलवन्ना। जोयण सहस्स-चुलसीइमूसिया सहसमोगाढा ॥ ३ ॥ भूमितले दससहसा, चउणवइसया य सहसमुवरितले। पिहुला अडवीसं सत्तिगं दसंसोय खयवुड्डी ॥ ४॥ पुव्वदिसि देवरमणो, निच्चुज्जोओ य दाहिणदिसाए। अवरदिसाए सयंपभ, रमणिज्जो उत्तरदिसाए ॥ ५॥ त्रिभिः कुलकम् अंजणनगाण चउदिसि, जोयणलक्खंमि लक्खविक्खंभा। पुक्खरिणीउ सहस्सोव्वेहा निम्मच्छ-सुच्छ-जला॥ ६॥ नंदिसेणा अमोहा य, गोथूभा य सुदंसणा। नंदुत्तरा य आनंदा, सुनंदा नंदिवद्धणा॥ ७॥ भद्दा विसाला कुमुया, बारसी पुंडरीगिणी। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ ८॥ पुव्वाइकमा नामा, पुक्खरिणीणं तओ य पंचसए । गंतूण लक्खदीहा वणसंडा पंचसयपिहुला ॥ ९ ॥
१. उत्तरे पासे इति प्र०।
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