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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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कत्तियअमावसाए, बाहत्तरिवरिसजीविय! जिणिंद!। नयरीए पावाए, नेव्वाणं पत्त तुज्झ नमो ॥ ६॥ इय चवणपभिइपनरसपयत्थपयडणथुईएँ संथुणिओ। वंछियपयं पयच्छउ, वीरो सेसा वि तित्थयरा॥ ७॥
इति श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तोत्राणि
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