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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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तं नाह माह छट्ठीए नवमगेविजगाउ कसिणाए । अवयरिए ससिरीया, अहेसि सुहकोस! कोसंबी ॥ २॥ तुहऽबालपवालप्पह! जाए जम्मम्मि कन्नरासिम्मि। कत्तियदुवालसीए, किण्हाए चिरं जयंति जयं ॥ ३॥ सा कत्तियस्स कसिणा, वि तेरसी कह न होइ जयपयडा?। जीए तुमं पव्वइओ, कय छट्ठो निवसहस्सजुओ ॥ ४॥ चित्तस्स पुन्निमाए, सहसंबवणम्मि झाणपडिवनो। तं केवलि त्ति महिओ, छण्हं मासाणमवसाणे॥ ५॥ तं तीस पुव्वलक्खे, अक्खंडे जीविऊण सम्मेए । मग्गसिरबहुलएक्कारसीएँ सिद्धिगयं देसु सिवं ॥ ६॥
७. सुपार्श्वजिनस्तोत्रम् निद्धणियभवावासं, वासवनमियं मियंकबिंबसमं । समणगणसरियपासं, सुपासतित्थंकरं थुणिमो ॥ १॥ उज्झिय मज्झिमउवरिमगेविजं नाह! तं समोइन्नो। भद्दवयमासबहुलट्ठमीएँ वाणारसिपुरीए ॥ २॥ असरिसगुणेहिं अतुलो, तुलाए रासिम्मिजिट्ठमासस्स। सियबारसीए कंचणसमप्पहो तं पसूओऽसि ॥ ३ ॥ जय जिट्ठ जिट्ठ सियतेरसीए नरवइसहस्सपरिकिन्नो। कयछट्ट किट्ठतव' संजमसेलं तमारूढो॥ ४॥ नवमासे छउमत्थो, अच्छिय छट्ठीए फग्गुणे किण्हे। सहसंबवणे तं देव! केवलालोयमणुपत्तो ॥ ५॥ फग्गुणकसिणाए सत्तमीए सम्मेयरम्मसेलम्मि। सिवगईंगय! जिणवर! वीसपुव्वलक्खाउय पसीय॥ ६॥
८. चन्द्रप्रभजिनस्तोत्रम् जसुच्छलंतनिम्मलकिरणावरणा सुसहइ नहपंती। चिंतामणिमाला इव, तं चंदप्पहपहुं नमिमो॥ १॥
१. तवो इति जे०का०छा० ।
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