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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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धम्मकहाइ चउमुहं, अच्चयगुणमसमलोयणं नमह । भवठिइपलय समुत्थं, जिण विसरंति पुरिसमयं वा॥ २॥ तिपयमयं तियसमयं तिलोकमयं विस्सुयं सुयं नाणं। तिगुणं तिकाल-विसयं, नमहं तिसंझंपि तिविहेण ॥ ३ ॥ गयवाहणो गयगई, कुवलयकालोवि न कुवलयकालो। कयनयरक्खो जक्खो, धणुओ लहु होउ मुहधणओ॥ ४॥
सम्मत्ताओ चउवीस-तित्थयर-थुईओ। गाथा॥ ९६॥
कृतिः श्रीजिनवल्लभसूरीणां॥
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