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________________ महावीरचरितम् माहणकुंडग्गामे, अवयरिओ सिय असाढछट्ठीए। विप्पोसहदत्तगिहे, देवाणंदाइ उदरम्मि॥ १० ॥ अह बासीइदिणंते, चउदससुमिणेहिं इंतजंतेहिं । हत्थुत्तरकयकल्लाणापणगअच्छरियचरिय तओ ॥ ११ ॥ जणनायनायखत्तिय-पसिद्धसिद्धत्थपत्थिवपियाए। चेडगनिव भगिणीए, तिसलादेवीएँ कुच्छीए ॥ १२॥ सक्कभणिएण हरिणेगमेसिणा गब्भविणिमयं काउं। आसोयकसिणतेरसि-निसाए तं नाह! साहरिओ॥ १३ ॥ खत्तियकुंडग्गामे, जाओ चित्तसियतेरसिनिसद्धे । कासवगुत्ते' कणगाभ!, कन्नरासीइ सीहंको ॥ १४॥ जेण-चिंतामणि तुमए, अवइन्ने रयणजणधणकणेहिं । वड्डित्ता नायकुलंति वड्डमाणुत्ति तोऽसि फुडं ॥ १५॥ तं जम्ममजणखणम्मि सक्ककुवियप्पसंकमुक्खणिउं । जेण महंतमवि गिरिमीरित्थ तओ महावीरो॥ १६॥ पियरमरणेवि तं जिट्ठभाऊवयणेण ठासि वासदुगं। गिहिवासिच्चिय निरवजवित्तिणा निच्छय मुणिव्व ॥ १७ ॥ सत्तकरदेह गेहम्मि अच्छिउं तीस वच्छरे कुमरो। लोगंतियतारविओ, संवच्छरमिच्छियं दाउं ॥ १८॥ सुरनरवइकयबहुविह-जलण्हवणो सुरविलेवणविलित्तो। रुइरालंकार धरो, चउदेवनिकायसमणुगओ ॥ १९ ॥ चंदप्पहसिवियाए, मग्गसिरे कसिणदसमिअवरण्हे । पढमवए पव्वइओ, छटे णं नायसंडवणे ॥ २० ॥ कुम्मारगामबाहिं, वयपढमनिसाइ एइ किर सक्को। वारइ गोवं वागरइ, निरुवसग्गं करे भंते ! ॥ २१ ॥ १. कासवगुत्तो इति ह। २. निच्छिय इति ह०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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