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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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चउदससुमिणपिसुणिओ, मेसे भरणिकयपंचकल्लाण। भद्दवयकसिणसत्तमिनिसाए तं नाह! अवइन्नो॥ ११॥ अवयरिए तइं पियरो, समिच्च इंदेण सलहिया महिया। मायाऽसि गूढगब्भा, गिहं च फुडबहुविहनिहाणं ॥ १२ ।। तो जेट्टकसिणतेरसिरत्तीए कणयवण्ण हरिणंको। कासवगुत्ते जाओ, चालीसधणूसियसरीर!॥ १३ ॥ अह झत्ति जगुज्जोए, जाए चलियासणा करे महिमं। छप्पन्नदिसिकुमारी तदणु चउसट्ठिसुरवइणो॥ १४॥ गब्भगए चेव तए, असिवोवसमो जओ जए जाओ। सुमरणमित्तेणऽवि कुणसि संतिमिय नाम ते संती ॥ १५ ॥ पणवीसवाससहसा, कुमरत्ते मंडलित्त चक्कित्ते । समणत्ते य तुह गया, पत्ते पुण चक्कट्टिपए ॥ १६ ॥ जाया ते नवनिहिणो, चक्कट्ठ प्रइट्ठजोयणाट्ट च्चा। बारसनवजोयणदीहवित्थडा निहिसनामसुरा॥ १७ ॥ जक्खसहस्सा सोलस, तदुगुणा मउडबद्धनरवइणो। तदुगुणा रमणीओ, आणाणुगया तुह अहेसि ॥ १८॥ छन्नउई कडीओ पाइक्काण तह पवर गामाण। हयगयरहाण लक्खा, पत्तेयं तुज्झ चुलसीई॥ १९ ॥ बत्तीसबद्धनाडय, बत्तीससहस्स अभिणइजंतो। तावइयजणवयपहू, अकासि नासियभयं भरहं ॥ २० ॥ कमसो चउदस सोलस, बीसा बावत्तरी य नवनवई। संबाह-खेड-गागर-पुरवर-दोणमुह-सहसा ते॥ २१॥ आसी तुह पत्तेयं, मडंब-कब्बड-सहस्स चउवीसा। दुगुणाणि पट्टणाणि य, चउदसरयणेसर! जिणेस!॥ २२ ॥ छप्पन्नमंतरोदग-कुग्गाम-मेगूणवनमन्नं च। बहुवित्थडं छड्डिय, चक्किसिरि निवसहस्सजुओ ॥ २३ ॥
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