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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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चउदसपुव्वि सहस्सा, पउणा पंच नव ओहिनाणीणं। केवलिजिणाण वीसं, ते छसयजुया विउव्वीणं ॥ २१॥ बारससहसा छसया, सद्धा वाई य विउलमइणो य। बावीससहस्साणुत्तरोववाई नव सया य॥ २२ ॥ सामन्नं पालिय पुव्वलक्खमक्खिय महव्वए पंच। चक्कहरभरहवंदिय, चउकल्लाणुत्तरासाढा ॥ २३ ॥ पज्जंकठिओ' अट्ठावए समं दसहिं साहुसहसेहिं । तं माहकिण्हतेरसि-पुव्वण्हे ऽभीइरिक्खम्मि॥ २४ ॥ चउदसमेण सिवसुहं, संपत्तोऽसि जिण! वल्लह मुणीणं। मह कुरु दयं हर भयं, देहि मई नेहि परमपयं ॥ २५ ॥
इति आदिनाथचस्तिम्
१. 'पल्लंकठिओ' इति मु०।
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