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आदिनाथचरितम्
अह चलियासणछप्पन्नदिसिकुमारिकयसूइकायव्वो। तुमममरगिरिम्मि सोहम्मसामिणा लहु सयं नीओ॥ १० ॥ तो भत्तिब्भरनिब्भरमब्भुयभूओभवतभावेहि। सव्वड्ढि वड्डियायरमहि सित्तोऽखिलसुरिंदेहिं ॥ ११॥ सक्क करकलियमिक्खुं, बालत्ते दट्ठ मभिलसंतेण। इक्खागुवंसबीयं, जए पणीयं तए चेव॥ १२॥ वीसं कुमार भावे, रज्जे तेवट्ठि पुव्वलक्खे तं । सुरविहियाहारविही अच्छिय दरिसियकलासिप्पो॥ १३ ॥ जीयंति य लोयंतिय-विबोहिओ वरिसदिन्नवरदाणो। सिबिया सुदंसणाए, छटेण देवदूसधरो॥ १४॥ सिद्धत्थवणे तमसोग-तरुअहे चउहिं निवसहस्सेहिं। सह चित्ते बहुलऽट्ठमी, अवरण्हे जिण! विणिक्खंतो॥ १५॥ सेयंसेण गयउरे, इक्खुरसेण वरिसे तुमं पढमं । पाराविय खावियमिह, महाफलं सुमुणिवरदाणं ॥ १६॥ पंचधणुसयपमाणो, चउनाणो तुममसंगमोणेण। बहुदेसेसु विहरिओ, वाससहस्सं निरुवसग्गं॥ १७ ॥ तुह पुरिमतालपुरि सगडमुहवणे अट्ठमेण वडहिटे। फग्गुणकसिणिक्कारसिपुव्वण्हे केवलं जायं ॥ १८ ॥ अह चुलसीइसहस्से, साहूणं साहूणीण लक्खतिगं। तं सिवमग्गमकासी, चुलसीइ गणे गणहरे य॥ १९॥ पंचसहस्सऽब्भहियं, लक्खतिगं भावसावयाण तुमं। चउपन्नसहस्सजुया, लक्खा पंचेव सड्ढीणं ॥ २० ॥
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