SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि ७५ अइ दसमदुरंतच्छेरय ! ब्भासरासी ! दुसमसमय ! हंभो ! तुब्भमेसप्पभावो। जमिह कवडकूडा साहुलिंगी गुणड्डे, परिभविय पहुत्तं जंति नंदंति दूरं॥ २४ ॥ किर बहुपहुपासे धम्मसुस्सूसणाए, कुमयविउडणेणासंकिया हुंति भावा। नवसुविहियसेवासत्ततत्तत्थियाणं, कहमिव विवरीयं जायमव्वो इयाणिं ॥ २५ ॥ इय कुपहपयारं सुद्धधम्मंधयारं, परिलसिरमसारं छड्डिउं निव्वियारं। सइ अणभिनिविठ्ठा सुत्तजुत्तीविसिट्टा, गयभयमयतिा होइ सम्मग्गनिट्ठा ॥ २६ ॥ इति नवमकुलकम् १०. दशमं कुलकम् इत्थुग्गकुग्गहकुसासणभिल्लभीमे, चिंताविसुक्कडकसायमहाभुयंगे। अन्नाणदारुणदवे नवनोकसाय-लल्लक्कसावयगणे भवसंकडिल्ले॥ १॥ जीवा चउग्गइगया कुलकोडिजोणी-लक्खेसु दुक्खतविया बहुसो भमंति। दीहद्धमेव भवकायठिईहिं धम्म-कम्मक्खमं नरभवाइ न पाउणंति ॥ २॥ गंभीरनीरनिहिनट्ठमणिं व धम्म-सामग्गिमित्थ समिलाजुगजोगतुल्लं। एमेव पाविय कहंपि कहिंचि काग-तालीयनायवसओ सहियं करेह ॥३॥ जंतू य दुक्खविमुहासइ सुक्खकंखी,सुक्खं च अक्खयमभिक्खणमाहु मुक्खे। सम्मत्तनाणचरणाणि य तस्सुवाओ, तस्साहणाय पुण रे ! इय निच्चकिच्चं ॥४॥ संविग्गसग्गुरुकमागयजुत्तजुत्ती-१ २वीसंतसुत्तपरमत्थविऊ जयंत । सेवेह धम्मगुरुणो बहुमाणभत्ति-रागेण ताण वयणं च मणे धरेह ॥ ५ ॥ वेरग्गभावणकसासुगुरूवएस-रज्जूहि इंदियतुरंगगणं दमेह । नाणंकुसेण गुणपायवलग्गमुद्दा-मुद्दामकामकरिणं सवसं विहेह॥ ६॥ १. 'जुत्तिजुत्त' इति अ०। २. 'वीसत' इति अ०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy