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द्वादशकुलकानि
गुणअगुणविहत्तिं पावठाणे विरत्तिं, सुयपढणपसत्तिं साहुकज्जेसु तत्तिं । पवयणअणुरत्तिं सासणत्थेसु सत्तिं, जिणमुणिजणभतिं धेह धम्माविवत्ति॥ १२ ॥ फुडमिह भवकज्जे सव्वसत्तीइ लोया, सययमइपसत्ता नो मणागं पि धम्मे। इय बहुजणसन्नं मुत्तु सव्वायरेणं, जयह जिणवरुत्ते चत्तभीसंकलज्जा ॥ १३ ॥ इह सुहुमनिगोया चेव अव्वावहारी, सुहुमियरइगिंदी वावहारी तसा य। सहजसपरिणामा भव्वभव्वा य कम्म-ऽगनिगडनिबद्धा झायहिच्चाइ तच्चं ॥ १४॥ अमुणियगुणदोसं पासिउं साहुवेसं, पढममसढभावा लेह सुस्संजयं व। पुण बकुसकुसीलुत्तिनमुस्सुत्तभासिं, विसविसहरसंसग्गिं व उज्झेह झत्ति ॥ १५॥ जइ वि दुसमदोसा भासरासिप्पवेसा, जिणमयमुणिसंघो नो तहिण्हिं महग्घो। तहवि दसमदुट्ठच्छेरउब्भूयनाम-स्समणगणपहे नो मुज्झियव्वं बुहेहिं ।। १६ ।। तह विलसिरहुंडोसप्पिणीकालदोसु-ल्लसियकुगुरुवुत्तुस्सुत्तरत्ते वि लोगे। अवगणिय तदुत्तं होइ दुद्देसणासी-विसपसमसुमंतायंत संसुद्धबुद्धी॥ १७॥ अइसंयविरहाओ खित्तकालाइदोसा, विगुणबहुलयाए संकिलिटे जणम्मि। सपरसमयलोयायारणाभिन्नतुण्ड-ग्गलखलजइरजे नज्जए नो गुणीवि ॥ १८ ॥ सययमिह जियाणं सोगदोगच्चवाही-जरमरणभयाई वेरिणो दुन्निवारा। जइ खयकरमेसिं कोइ कंखिज तत्तं, तहवि कुपहदंसी ही!! दुरंता कुलिंगी॥ १९ ॥ नियगुरुकमरागेणऽन्नदक्खिन्नओ वा, समइअभिनिवेसेणंधमंधीइ केई। सुविहियबहुमाणी होउ मज्झत्थनाणी, इय कुसुयकुबुद्धं बिंति आणाविरुद्धं ॥ २०॥ नियमइकयसामायारिचारित्तसन्ना, मुसियजलजणोहा सुत्तउत्तिण्णबोहा। वयमिह चरणड्डा हंत!! नन्नित्ति बिंता, परपरिभवमत्तुक्कासमुल्लासयंति ॥ २१ ॥ कुगुरुसु दढभत्ता तप्पहे चेव रत्ता, अमुणियसुयतत्ता साहुधम्मे पमत्ता। गुरुकुलकमचत्ता संकिलेसप्पसत्ता, अहह!! कहमपत्ता चेव ही खाइपत्ता ॥ २२॥ कुगुरुवयणदूढा संसयावत्तछूढा, अइबहुभवरूढारे-तुच्छमिच्छत्तमूढा । अपरिणयसुयत्थं जीवियासंसघत्थं, सुहगुरुरयमेवं बिंति मुत्तं व देवं ॥ २३ ॥ १. 'देढसत्ता' इति अ०।
२. 'अतिभववनु' इति अ०। ३. 'रूढा' इति अ०।
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