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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
मय- मित्ती गारव - कारणेहि पलिउंचियं भयं तं च। आलिट्ठ - मणालिट्टं, चूलिय चुडुलित्ति बतीसा ॥ १२ ॥ दुपवेसमहाजायं, दुओणयं पयडबारसावत्तं । इग निक्खमंति गुत्तं, चउसिर नमणं ति पणुवीसा ॥ १३ ॥ अह सम्ममवणयंगो करजुय विहि धरिय पोत्तिरयहरणो । परिचिंतिए इयारे, जहकम्मं गुरुपुरो वियडे ॥ १४॥ अह उवविसित्तु सुत्तं, सामाइयमाइयं पढिय पयओ । अब्भुट्ठिओमि इच्चाइ, पढइ दुह उट्ठिओ विहिणा ॥ १५ ॥ दाऊण वंदणं तो, पपागाइसु जइसु खामए तिन्नि । किइकम्मं करियट्ठिओ, सड्ढो गाहातिगं पढइ ॥ १६॥ इह' सामाइय उस्सग्ग- सुत्तमुच्चरिय काउसग्गठिओ। चिंतइ उज्जोयदुगं चरित्तअइयारसुद्धिकए ॥ १७ ॥ विहिणा पारिय सम्मत्तसुद्धिहेउं च पढिय उज्जीयं । तह सव्वलोय अरहंतचेइयाराहणुस्सग्गं ॥ १८ ॥ काउं उज्जोयगरं, चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो । पुक्खरवरदीवड्ढे, कड्डइ सुयसोहणनिमित्तं ॥ १९ ॥ पुण पणुवीसुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिया - फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ २० ॥ अह सुयसमिद्धिहेउं, सुयदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोक्कारं, सुणइ वदेइ व तीइ थुयं ॥ २१ ॥ एवं खेत्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देवथुई । पढिउं च पंचमंगलं, उवविसइ पमज्ज संडासं ॥ २२ ॥ पुव्वविहिणेव पेहिय पुत्तिं दाऊण वंदणं गुरुणो । इच्छामो अणुसद्धिं ति, भणिय जाणूहिंतो ठाइ ॥ २३ ॥
१. 'अह' इति बी० ।
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