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________________ ७. प्रतिक्रमण-समाचारी सम्मं नमिउं देविंदविंदवंदियपयं महावीरं । पडिकमणसमायारी, भणामि जह संभरामि अहं॥ १॥ पंचविहायारविसुद्धिहे उमिह साहू सावगो वावि । पडिकमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्कोवि॥ २॥ वंदित्तु चेइयाई, दाउं चउराइए खमासमणे। भूनिहियसिरो सयलाइयार-मिच्छुक्कडं देइ ॥ ३॥ सामइय पुव्वमिच्छामि ठाइउं काउसग्गमिच्चाई। सुत्तं भणिय पलंबियभुयकुप्परधरिय परिहणओ॥ ४॥ संजइ-कक्ट्ठि -घण-लग्ग-लंबुत्तर-खलिणि-सवरि-बहु-पेहा । वारुणि-भमुहं-गुलि-सीस-मूय-हय-काय-नियलुद्धी ॥५॥ थंभाइदोसरहियं, तो कुणइ दुहूसिओ तणुस्सग्गं । नाभिअहो जाणुद्धं, चउरंगुलठविय कडिपट्टो॥ ६॥ तत्थ य धरेइ हियए, 'जहक्कम दिणकए अईयारे। पारेत्तु नमुक्कारेण पढइ चउवीसथयदंडं ॥ ७ ॥ संडासगे पमज्जिय उवविसिय अलग्गविययबाहुजुओ। मुहणंतगं च कायं, च पेहए पंचवीस इहा॥ ८॥ उट्ठिय ठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्म। बत्तीसदोसर हियं, पणुवीसावस्सगविसुद्धं ॥ ९॥ थद्ध-पविद्ध-मणाढिय परिपिंडिय-मंकुसं झसुव्वत्तं । कच्छवरिंगिय टोलगइ ढढ्रं चेइयाबद्धं ॥ १०॥ मणरुट्ठ-दुट्ठ-तज्जिय, सढ-हीलिय-तेणियं पडणियं च । दिट्ठ-मदिटुं सिंगं, करमोअण-मूण-मूयं च॥ ११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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