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जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि
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महु-मक्खण-सिंघाडय-गोरसजुयविदलजाणियमणंतं । अन्नायफल-वयंगणयं, चुंबरिमवि न भुंजामि॥ ११ ॥ बाहडमेरुं माणं, चुप्पडपल दुन्नि असणण्हाणहाणेसु। खाइमपलाण असीई, घडग दुगं होइ मह पाणे ॥ १२ ॥ पन्नास पत्तपुप्फल, दसगं पल पंच साइमे सयले। विगइ चउ दव्व चत्तालीसा सच्चित्तसत्ताइं॥ १३॥ अंगोहलिया दुन्निय, पइदिवसं घडदुगेण य जलस्स। दोण्हाणा भोगत्थ, मासे जलघड-चउक्केण ॥ १४ ॥ दस ओगाहिम पंच य, पाणादिव सय तेमणा वीसं। भोगाणं विंससयं, परिभोगाणं च सट्ठिसयं ॥ १५ ॥ अत्थाणयस्समिय मे, वेसो दम्माण असियसय संतो। चालीसं गहियाणा, आभरणे तह सुक्नस्स॥ १६॥ अट्ठमि चउदसि-गारसि, पणजिणकल्लाणदिवसमझंमि। विगइतिग बिगासणयं, इगासणं वरिस चउमासे ॥ १७॥ अरिमरणपुरवहाई, मुहुत्त पुरओवए अ बज्झाणं । तह सव्व जूय-दोला-जलकीला-जीवजुज्झाई॥ १८॥ कंदप्पदप्पनिट्ठीवणाइ सुयणं चउव्विहाहारं । सजिण-जिणमंडवं तो, विकहं कसहं च जयणाए । १९ ।। सत्थग्गि-मुसल-हल-जंतगाइ दक्खिन्नकारणे देमि। पावुवएसं च तहा, करिसण-गोणाइ दमणाई॥ २० ॥ सामाइय-पडिकमणे, सट्ठी कहं सया वि भासंतो। जलथलपहेसु दिवसे, वीसं दस जोयणा जामि ॥ २१॥ काले नियगेहागय-सुविहियसाहूण दाउ भुंजिस्सं। जिणचेइए य पूइय, सइ सवित्तो दव्वपूयाए । २२ ।।
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