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________________ ५. श्रावकव्रतकुलकम् वीरं नमिउं सम्मत्तमूलमंगीकरेमि गिहिधम्मं । देवो जिणो पमाणं, तव्वयणं मह गुरू गीया॥ १ ॥ धम्मत्थमन्नतित्थे, न करे तवण्हाणदाणपिंडाई। चिइवंदणं च इक्कं, सक्कत्थएण वि सया काई॥ २॥ पाणिवह-मुसावाए-अदत्त-मेहुण-परिग्गहे चेव। दिसि-भोग-दंड-समइय-देसे-तह पोसहविभागे॥ ३॥ थूलाइ पाणिघायं, अलियं कन्नाइगोयरं सव्वं । अदत्त दुविह-तिविहेण, खत्तखणणाइणो नियमो॥ ४॥ परदारं वजेमी, सयणाइ-सदार तह य कारवणं। दुब्भासहासकलहाइ, मुक्कलं बंभवयविसयं ॥ ५ ॥ धणधन्नखित्तवत्थू रुप्पसुवन्ने य चउप्पए दुपए। कुविए परिग्गहे नवविहे य इच्छापमाणमिणं ॥ ६॥ पंचाससहस्सदम्मा, धणंमि मह चउव्विहम्मि मुक्कलया। धन्ने मूढग दुसयं, तिल्लघयाणं घडा सठ्ठी॥ ७॥ इक्कं खित्तं घर चारि, हट्ट चउरो य करह चालीसा। गो-वसह तह य तीसा, चउरो सगडा य अस्सा य॥८॥ वाहिणी दासा दासी, दो सिरि पट्टणाउ नयराउ। जोयणसड्ढसयं चउदिसासु-पंचास जलमग्गे ॥ ९॥ जोयण दो उठें तह, धणुह सयं होइ अहे य मग्गंमि। निसि असणखाइमे न हु जिमेसया मुत्तु घरणाई ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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