________________
३०
पिण्डविशुद्धिप्रकरणम्
थेरपहुपण्डवेविरजरियंधऽव्वत्तमत्तउम्मत्ते। करचरणछिन्नपगलियनियलण्डुय पाउयारूढो ।। ८५ ।। खंडइ पीसइ भुंजइ, कत्तइ लोढेइ विक्किणइ पिंजे' । दलइ विरोलइ जेमइ, जा गुव्विणि बालवच्छा य॥ ८६ ।। तह छक्काए गिण्हइ, घट्टइ आरभइ खिवइ दट्ट जइ। साहारण-चोरियगं, देइ परकं परटुं वा॥ ८७॥ ठवइ बलिं उव्वत्तइ, पिढराइ तिहा सपच्चवाया जा। दिंतेसु एवमाइसु, ओहेण मुणी न गिण्हंति ॥ ८८॥ जुग्गमजुग्गं च दुवे वि मीसिउं देइ जं तमुम्मीसं। इह पुण सचित्तमीसं, न कप्पमियरम्मि उ विभासा॥ ८९ ॥ अपरिणयं दव्वं चिय, भावो वा दुण्ह दाणि एगस्स। जइणो वेगस्स मणे, सुद्धं नऽन्नस्स परिणमियं ॥ ९० ॥ दहिमाइलेवजुत्तं, लित्तं तमगिज्झमोहओ इहइं। संसट्ठमत्तकरसावसेसदव्वेहिं अडभंगा॥ ९१ ॥ एत्थ विसमेसु घिप्पइ, छड्डियमसणाइ होंत परिसाडिं। तत्थ पडते काया, पडिए महुबिंदुदाहरणं ॥ ९२ ॥ इय सोलस सोलस दस, उग्गमउप्पायणेसणा दोसा। गिहिसाहूभयपभवा, पंचउ गासेसणाइ इमे ॥ ९३ ॥ संजोयणा पमाणे, इंगाले धूमऽकारणे पढमा । वसहि बहिरंतरे वा, रसहेउं दव्वसंजोगा॥ ९४॥ धिइबलसंजमजोगा, जेण ण हायंति संपइ पए वा। तं आहारपमाणं, जइस्स सेसं किलेसफलं ॥ ९५ ॥ जेणऽइबहु अइबहुसो, अइप्पमाणेण भोयणं भुत्तं । हादिज्ज व वामिज्ज व, मारिज व तं अजीरंतं ॥ ९६ ।।
१. 'पिंजइ' इति पु० बी० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org