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________________ . कीर्तिकलाख्यो हिदीमाषानुवादः किसको होंगे ? । पुण्यपाप के अभाव होने से भी सुख दुःख का अभाव ही सिद्ध होता है। क्योंकि सुख दु,ख का कारण पुण्यपाप है। कारण के अभाव होने से कार्य का अपने आप अभाव हो जायगा । पुण्यपाप नहीं होने से बन्ध भी नहीं होगा। क्योंकि पुण्यपाप ही बन्ध है । बन्ध के अभाव से मोक्ष का भी अभाव हो जायगा। क्योंकि बन्धन का मोक्ष होता है। इस प्रकार एकान्तवाद में सुखदुःखभोग आदि का अभाव हो जायगा) । हे जिनेन्द्र ! परतीर्थिकों को एकान्तवाद का व्यसन है। (क्योंकि दोष को देखकर भी उसका त्याग नहीं करते हैं )। इसलिये परतीर्थिक लोग दुर्नीतिवाद (एकान्तवाद) का व्यसनरूपी तलवार से सम्पूर्ण जगत को ही लुप्तकरने पर तुले हुए हैं। (पुण्यपाप ही सृष्टि के कारण हैं। एकान्तवाद में पुण्यपाप का सम्भव नहीं । इसलिये कारण नहीं रहने से कार्यरूप जगत् का लोप अनिवार्य हो जायगा। किन्तु ऐसा होता नहीं है, इसलिये एकान्तवादी लोग दुर्नयवादी हैं।) ॥ २७ ॥ हे जिनेद्र ! दुर्नय (एकान्तवाद ) के वाक्यो से पदार्थों का 'सत् ही है । इस प्रकार अन्यधर्मों का निषेध कर के ही ग्रहण होता है। (यह दुर्नय इसलिये है की इस पक्ष में रहने बाले असत्त्व अनित्य आदि धर्मों का निषेध हो जाता है, इसलिये पदार्थों का यथार्थ स्वरूप में ग्रहण नहीं होता है ।) नयवाक्यों से (घटादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002680
Book TitleDvantrinshikadwayi Kirtikala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherBhailal Ambalal Shah
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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