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कीर्तिकलाख्यो हिन्दीमाषाऽनुषादः
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की गयी परीक्षा से यह बात सिद्ध हो चुकी है । अन्यतीर्थिकों को पदार्थ का तत्त्व ज्ञान नहीं है, इसलिये ही वे एकान्त का प्रतिपादन करते हैं। जिसको पदार्थ का वास्तविक ज्ञान होगा, वह अनेकान्त का ही समर्थन करेगा। इस पद्य में स्याद्वाद के चार मूल भेदों का सङग्रह किया गया है। कथञ्चित् भेद, कथञ्चित् अभेद रूप पाचवां भेद भी है। जिसका प्रतिपादन सप्तम पद्य में किया गया है। यह बात यहां स्मरण में रखना चाहिये। यहां पर संग्रह नहीं करने का कारण यह हो सकता है कि पदार्थ के नित्यानित्यादि स्वरूप सिद्ध होने पर ही नित्यानित्यत्वादि में भेदाभेदात्मकत्व का समर्थन हो सकता है, अन्यथा नहीं। इसलिये मूलभेद चार ही होते हैं। चारों भेदों में प्रत्येक में परस्पर भेदाभेद है। यह पक्ष पश्चात् तथा उन चारों भेदों के आश्रय से ही उपस्थित होता है, यह स्पष्ट है ।) ॥२५॥
(एकान्तवादियों को अनेकान्तवाद के विरुद्ध में बोलने का अवसर भी नहीं है। क्योंकि-) नित्य एकान्त पक्ष में जो दोष हैं, मानित्य एकान्त पक्ष में भी वह सब दोष समान ही है । हे जिनेन्द्र ! अल्पज्ञ होने के कारण आप के क्षुद्रशत्रु जैसे एकान्तवादी लोग सुन्दोपसुन्दन्याय से परस्पर ही नष्ट होने बाले हैं। (नित्यवादी अनित्यवादी का तथा अनित्यवादी नित्यवादी का खण्डन करते हैं। इसलिये परस्पर खण्डन करने से स्वयं नष्ट हैं। ऐसी स्थितिमें अनेकान्तवाद का खण्डन करने की क्षमता एकान्तवादियों में कैसे होगी।
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