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कीर्तिकलाख्यो हिन्दीभाषानुवादः
शून्यवाद का समर्थन नहीं कर सकते। यदि शून्यवादी प्रमाण का उपन्यास करेंगे तो सर्व शून्यवाद सिद्धान्त ही विरुद्ध हो जायगा । (क्यो कि प्रमाण ही सत् पदार्थ हो जायगा । इसलिये सर्वशून्यः वाद का अपने आप खण्डन हो जायगा । असत्प्रमाण से तो किसी भी सिद्धान्त का समर्थन नहीं किया जासकता । इसलिये शून्यवाद प्रमाण की विचारणा के बिना ही प्रवृत्त होने के कारण उपहासास्पद है।) ॥ १७ ॥
हे जिनेन्द्र ! आप के प्रतिपक्षी बौद्ध कृतप्रणाश, अकृतकर्मभोग, भवभङ्ग, मोक्षभङ्ग, स्मृतिभङ्ग आदि दोषों की उपेक्षा करके 'सर्व क्षणिक है ' ऐसा प्रतिपादन करते हुए महा साहसी ( अत्यन्त अविचारित प्रवृत्ति करने बाले) हैं। यह आश्चर्य जनक है। (कोई भी विद्वान् अपने पक्ष में सम्भवित दोषों की उपेक्षा नहीं करता। किन्तु क्षणिकवादी ही ऐसे हैं, इसलिये नवीन होने के कारण यह बात आश्चर्यजनक है। ) क्षणिकत्व वाद में कृतप्रणाशादि दोषों का प्रतिपादन-यदि सब पदार्थों को क्षणिक माना जाय, तो कर्म भी क्षणिक ही होगा । ऐसी स्थिति में किये हुए कर्मों का फल दिये बिना ही तत्काल ही नाश हो जायगा, इसलिये कृत काफल दिये बिना ही नाश रूप कृतप्रणाश दोष होता है । तथा कर्म का नाश हो जाने से होरहा भोग किये हुए कर्मों का नहीं कहा जा सकता, इसलिये अकृतकर्मभोग दोष होता है ! कर्म के नाश
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