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कीर्तिकलाख्यो हिदीमाषानुषादः
आवश्यकता नहीं । ईश्वर के अप्रमाणित होने से दूसरी बातें स्वयं ही निर्मूल हो जाती है । इसलिये जगत भी नित्यानित्य है, एकान्त अनित्य या एकान्त नित्य नहीं, यह सिद्ध हो जाता है ।) ॥६॥
यदि सामान्य विशेष को एकान्त भिन्न माना जाय, तो घट धर्मी है, घटत्व धर्म है, इस प्रकार का धर्मधर्मिभाव नहीं हो सकता । (अन्यथा घट पट में भी धर्मधर्मिभाव की आपत्ति होगी ।) घटादि के देखने पर घट तथा घटत्व इन दो ही भावों का भान होता है, समवाय आदि सम्बन्ध का भान नहीं होता। इसलिये घट घटत्वादि में समवायादि सम्बन्ध के कारण धर्मधर्मिभाव है, एसा नहीं कहा जा सकता। क्यों कि दोनों में सम्बन्ध ही नहीं है, अन्यथा उसका भी भान होता । ('घट में घटत्व है। इस प्रकार के व्यवहार के बल से दोनों में सम्बन्ध की सिद्धि होती है, ऐसा भी नहीं कह सकते । क्यों कि इस प्रकार का व्यवहार समवायादि सम्बन्ध में भी है, जैसे 'घट में समवाय है' ऐसा व्यवहार होता है। इसलिये घट और समवाय में भी सम्बन्ध मानना पडेगा। ऐसी स्थिति में अनवस्था हो जायगी ।) घट और समवाय का सम्बन्ध स्वरूपात्मक होनेके कारण गौण है, इसलिये उसका सम्बन्धशब्द से व्यवहार नहीं होता है-ऐसा कहना भी उचित नहीं। क्यो कि सम्बन्ध के विषय में गौणमुख्य का भेद नहीं माना
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