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________________ कुल सर्ग ग्यारह - सब सर्गों की कुल श्लोकों की संख्या 849 है। छंदवार श्लोक निम्र हैं :क्रम छंद का नाम कुल श्लोक उपजाति वंशस्थ स्वागता अनुष्टप् वसंततिलका मालिनी मन्दाक्रान्ता प्रहर्षिणी द्रुतविलंबिन शार्दूलविक्रीडित शिखरिणी वैश्वदेवी हरिणी पृथ्वी शालिनी 16. भुजंगप्रयात उपरोक्त विवरण से देख सकते हैं कि कवि श्री जयशेखरसूरि ने इस महाकाव्य में उपजाति, वंशस्थ, स्वागता, अनुष्टप्, वसंततिलका आदि 16 छंदों का प्रयोग किया है। महाकाव्य की शैली के अनुरूप उन्होंने प्रत्येक सर्ग में एक मुख्य छंद का प्रयोग किया है एवं सर्ग के अंतिम में एक, दो या अधिक से अधिक 6 श्लोकों की अन्य छंदों में रचना की है। इन सभी छंदों में कवि को महाकवि कालिदास या महाकवि श्री हर्ष के समान उपजाति छंद सबसे अधिक प्रिय एवं अनुकूल हो ऐसा दिखाई देता है; कारण कि उसमें उन्होंने पाँच सर्ग लिखे हैं । ग्यारह सर्ग में पाँच सर्ग उपजाति में लिखने से वह छंद उनकी कवि प्रतिभा में कितना बस गया होगा उसकी जानकारी देता है। उन्होंने हरिणी, पृथ्वी, शालिनी जैसे छंद का इस महाकाव्य में केवल एक-एक बार ही प्रयोग किया है। उपजाति उपरांत वंशस्थ, अनुष्टप् आदि छंदों पर भी उनका प्रभुत्व देख सकते हैं। उन्होंने 'धम्मिलकुमार चरित्र' सम्पूर्ण महाकाव्य अनुष्टप् छंद में 3500 श्लोकों में लिखा है। उस पर से महाकवि कालिदास के समान उपजाति एवं अनुष्टप् छंद पर जयशेखरसूरि असाधारण प्रभुत्व रखते हैं उसकी स्पष्ट प्रतीति होती है। कवि श्री जयशेखरसूरि के जैनकुमारसंभव' महाकाव्य की तुलना अन्य प्रसिद्ध संस्कृत महाकाव्यों के साथ महाकाव्य के बाह्य देह की दृष्टि से करने पर भी जयशेखरसूरि की कवि प्रतिभा का परिचय (५२) [ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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