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________________ अवेदि नेदीयसि देवराजे, श्रोत्रोत्सवं तन्वति वाग्विलासैः। दिनो न गच्छन्नपि हन्त सख्यः, कालः किमेवं कुतुकैः प्रयाति ॥५९॥ अर्थ :- हे सखियों! देवराज इन्द्र अत्यधिक समीप में होने पर वाणी के विलासों से श्रोत्रोत्सव करने पर मैंने दिन को जाते हुए भी नहीं जाना। विज्ञापयाञ्चक्रुरथालयस्तां, विमुग्धचित्ते गतचिन्तयालम्। स्नातुं च भोक्तुं च यतस्व पश्य, खमध्यमास्कन्दति चण्डरोचिः॥६०॥ अर्थ :- अनन्तर सखियों ने उससे निवेदन किया। हे विमुग्धचित्ते ! बीती हुई बात की चिन्ता मत करो। सूर्य अपने मध्य में आक्रान्त हो रहा है। तुम स्नान और भोजन का उपक्रम करो। अहो अहः प्राप्यकृतप्रयत्नः, शनैः शनैरुच्चपदोपलब्धौ। करे खरीभूय नयस्य तत्त्वं, व्यनक्ति सूरेष्वपरेषु सूरः॥ ६१॥ अर्थ :- आश्चर्य है! सूर्य दिन को पाकर धीरे-धीरे उच्चपद की प्राप्ति में कृतप्रयत्न होकर किरणों के प्रति कठोर होकर दूसरे भटों के प्रति ज्ञेय के तत्त्व को प्रकट करता है। लोकं ललाटन्तपरश्मिदण्डै - रुत्सार्यभानुर्विजनीकृतेषु। सरस्ववक्रान्वियदन्तरस्थः, क्रोडे करान्न्यस्यति पद्मिनीनाम्॥६२॥ अर्थ :- ललाट को तपाने वाली किरण रूप दण्डों से लोक को दूर कर सूर्य निर्जन किए गए सरोवरों में कमलिनियों की गोद में आकाश के मध्य में स्थित होता हुआ सीधी किरणों को व्यापारित करता है। __पद्मं श्रियः सद्म बभूव भानोः, करैरधूमायत सूर्यकान्तः। भर्तुः प्रसादे सदृशेऽपि सम्प-त्फलोपलब्धिः खलु दैववश्या॥६३॥ अर्थ :- सूर्य की किरणों से कमल लक्ष्मी का निवासगृह हो गया। सूर्य की किरणों से सूर्यकान्त मणि धूम के समान आचरण करने लगा। स्वामी की कृपा तुल्य होने पर भी सम्पत्तियों की फलोपलब्धि भाग्य के आधीन होती है। यः कोऽपि दधे निशि राजशब्दं, दिगन्तदेशानियता ययौ सः। दधासि कस्योपरि तिग्मभावं, पान्थैः श्रमाते रविरेवमूचे॥६४॥ अर्थ :- श्रम से आकुल पथिकों से सूर्य ने, 'जो कोई रात्रि में राजा इस शब्द को धारण करता है वह इतने दिशाओं के छोर को जाता है, तो किसके ऊपर तीव्रपना धारण कर रहे हो', ऐसा कहा। (१७०). [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-११] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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