________________
अर्थ :- जो आम्रफल पहले कषाय से कलुष है, अत्यधिक रूप से घोलने से जिसने रस को भेंट किया है तथा जो विनाशशील हैं, जिसने वर्षा ऋतु को शत्रु बनाया है वह आम्र, जो ऐसे नहीं हैं अर्थात् आम्रफल के सदृश नहीं हैं, ऐसे ईश के वचनों के समान नहीं है।
द्राक्षया किल यदानुशिक्ष्यते, स्वं फलं मधुरतां भवद्रिः।
तत्तदा दुतमितो वियोज्यते, वेधसा ध्रुवममन्दमेधसा॥१२॥ अर्थ :- हे नाथ! निश्चित रूप से दाख आत्मीय फल आपकी वाणी से जब माधुर्य सीखता है तब वह फल (दाख) शीघ्र ही बहुत प्रज्ञा वाले ब्रह्मा से निश्चित रूप से पृथक् किया जाता है।
वारिवाहवदलं तव श्रवः-पल्वलप्रमभिवर्षतः सतः।
निश्यधीश शममाम मामकं, संशयान्धतमसं तदद्भुतम्॥१३॥ अर्थ :- हे अधीश! आपकी मेघ के समान अत्यधिक रूप से कर्ण पल्लव को भरती हुई सी वर्षा करने वाली वाणी ने रात्रि में मेरे संशय रूपी गहन अन्धकार को शान्त कर दिया, यह आश्चर्य है।
निर्गतं यदि तवाननाद्वचः, क्षीणमेव तदशेषसंशयैः। ..
कोशतोऽसिरुदितो भटस्य चे-नष्टमेव तदसत्त्वदस्युभिः॥१४॥ अर्थ :- हे नाथ! यदि आपके मुख से वाणी निकली तो समस्त सन्देह नष्ट ही हो जाते हैं । यदि म्यान से सुभट की तलवार निकलती है तो निर्बल चोर भाग ही जाते हैं।
तावकेऽपि वचने श्रुतिं गते, यस्य मानसमुदीर्णसंशयम्।
मुष्टिधामनि मणौ सुधाभुजां, तस्य हन्त न दरिद्रता गता॥१५॥ अर्थ :-- हे नाथ! आपके वचन कर्ण में जाने पर जिसका मन संशय से रहित हो जाता है उस पुरुष की मुट्ठी में चिन्तामणि रहते हुए क्या दरिद्रता नहीं गई? अर्थात् निश्चित रूप से उसकी दरिद्रता चली जाती है।
यत्त्वयौच्यत तथैव तन्महे, तन्महेश निजहृद्यसंशयम्।
कम्पते किल कदापि मन्दरो, मन्दरोष न पुनर्वचस्तव॥ १६॥ अर्थ :- हे महेश! जो तुमने कहा है, वह वैसा ही है, इसमें संशय नहीं है। हम अपने हृदय में विस्तार करते हैं । निश्चित रूप से हे मन्दरोष! सुमेरु कदाचित् कम्पायमान हो सकता है, किन्तु आपका वचन कम्पित नहीं होता है।
[जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१०]
(१४३)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org