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श्रीमद् राजचन्द्र
सच्चे उपकार करने का मौका मिल सकता है । वर्तमान दशा तथा हाथ नीचे के कार्योंकी जोखमदारीको देखते हुए कुछ समयके बाद सर्व-संग परित्यागका अवसर मिलना संभव है। हमें अपने सहज स्वरूपका ज्ञान है । इस कारण योग-साधनकी उतनी अपेक्षा न होनेसे हमने उस ओर अपनी प्रवृत्ति नहीं की । परन्तु उस योगको सर्व-संग परित्याग अथवा विशुद्ध देशत्यागकी ओर लगाना उचित जान पड़ता है । इससे लोगोंका बहुत उपकार होना संभव है; यद्यपि वास्तविक उपकारका कारण तो आत्म-ज्ञानको छोड़ कर और कुछ नहीं हो सकता ।
अभी दो वर्ष तक तो ऐसा अवसर नहीं देख पड़ता कि जिसमें वह योगसाधन विशेषतया उदयमें आ सके । इसके बाद उसके प्राप्त होनेकी संभावना की जाती है। इस मार्गमें तीन चार वर्ष बिताये जायँ तब कहीं सर्वसंग परित्यागी उपदेष्टा बननेकी योग्यता प्राप्त की जा सकती है और तब ही लोगों का कल्याण हो सकता है । छोटी उमर में मार्गके उद्धार करने की बड़ी जिज्ञासा रहा करती थी। इसके बाद जब कुछ कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ तब क्रम-क्रमसे वह जिज्ञासा शान्तसी होती गई । परन्तु इधर जो कुछ लोगोंका संम्बन्ध हुआ तो उन्हें मूलमार्ग में कुछ विशेषता दिखाई पड़नेके कारण उन्होंने उसकी ओर अपना लक्ष्य भी दिया। इसके बाद जो अब सैकड़ों तथा हजारों लोगोंसे सम्बन्ध हुआ तो जान पड़ा कि उनमें बहुतसे ऐसे मनुष्य निकल सकते हैं जो समझदार हैं और सच्चे उपदेश पर आस्था रखनेवाले हैं। इस परसे यह जान पड़ता है कि लोग ( संसार-सागरसे ) तैरनेके तो बड़े इच्छुक हैं पर उन्हें वैसा योग नहीं मिलता । जो वास्तचमें सच्चे उपदेशकका योग मिले तो निस्सन्देह बहुतसे प्राणी मूलमार्ग
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