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________________ परिचय । इस विषयमें जैनोंके प्रति खास आग्रह है कि वे श्रीमद् राजचंद्रके विचारों और उनके जीवनका अच्छी तरह अभ्यास करें । इसके बाद यदि उनका विश्वास हो जाय कि श्रीमद् राजचंद्रने भगवान् महावीर आदिके द्वारा कहे गये आत्म-स्वरूपको किसी खास हद तक प्राप्त कर लिया था तो उन्हें उचित है कि वे उन लोगोंको भी-जो कि जैन-दर्शनके सिद्धान्तोंसे अन भिज्ञ हैं इस बातके समझानेका यत्न करें कि श्रीमहावीर आदि महात्माओं द्वारा कहा गया आत्म-स्वरूप इस काल में भी प्राप्त किया जा सकता है और इस बातके उदाहरण श्रीमद् राजचंद्र हैं । पर यह विश्वास नहीं होता कि इस प्रकार हमारे सौभाग्यका उदय होगा कि वर्तमान जैनसमाजको इस प्रकारकी बुद्धि सूझेगी । इसके बहुतसे कारण हैं। उनका उल्लेख इस निबंधके उपसंहार में किया जायगा। __ अब इस विषय पर कुछ लिखना उचित जान पड़ता है कि वर्तमानमें जो जैनमतमें अनेक मतमतान्तर हो गये हैं और उनके कारण भगवान् महावीर आदि महापुरुषों द्वारा प्ररूपण किये हुए मूल जैनमार्गसे जो जैनसमाज बहुत दूर पिछड़ गया है उसके पुनरुद्धारके सम्बन्धमें श्रीमद् राजचंद्रके कैसे विचार थे । इसके लिए पहले यह बात लिखना उपयोगी होगा कि वर्तमान जैनसमाजके प्रति उनके कैसे विचार थे। उन्होंने वर्तमान स्थितिका चित्र इस प्रकार खींचा है। स्वपरका परम उपकार करनेवाले परमार्थ-स्वरूप सत्य धर्मकी जय हो। १ जैनधर्ममें आश्चर्य-कारक भेद पड़ गये हैं। २ वह खंडित हो गया है-छिन्न-भिन्न हो गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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