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परिचय।
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युगमें जहाँ आत्माका अस्तित्व ही स्वीकार नहीं किया जाता वहाँ आत्माकों त्रिकाल-नित्य माननेके लिए फिर जगह ही कहाँ रह जाती है ? और यदि ऐसा ही हो तो फिर जो यह कहे कि अभी मुझे इतने शरीर धारण करना बाकी है उसका वह कहना जड़वादी लोगोंको सिवाय भ्रमके और क्या जान पड़ेगा। इस विषयमें जड़वादियोंके प्रति यह कहना है कि वे खुद ऐसे पुरुषके सम्बन्धमें विचार करें। ऐसा करनेसे उन्हें विश्वास होगा कि जड़वादके सम्बन्धमें उन्होंने जो जो विचार किये होंगे उनकी अपेक्षा श्रीमद् राजचंद्रने अपनी लोक-प्रसिद्ध असाधारण शक्ति द्वारा कहीं अधिक विचार किया है। इसी प्रकार उन्होंने सब ही दर्शनोंका परिशीलन-मनन कर अपने अन्तिम विचार स्थिर किये हैं। कुछ लोगोंका यह विश्वास है कि जो लोग धर्मको ही अपना विषय बना लेते हैं उनके एक ऐसे प्रकारके विचार हो जाते हैं कि जिससे वे धर्मशास्त्रोंकी बहुधा बातोंको बिना 'हाँ'-'ना' किये मान लेते हैं। ऐसे लोंगोके प्रति इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि वे श्रीमद् राजचंद्रके विचारोंको जरा पढ़ें । उससे उन्हें विश्वास होगा कि जिस प्रकार एक बड़े भारी नास्तिकके मन पर धर्म-सम्बन्धी कोई भी प्रकारके विचारोंका जरा भी प्रभाव नहीं पड़ता उसी प्रकार श्रीमद् राजचंद्रके मनपर भी तत्त्व अथवा विश्व-व्यवस्थाकी कारणभूत वस्तुओंके सम्बन्धके धार्मिक विचार जरा भी अपना प्रभाव न डाल सके थे। यह बात बार बार कही जा चुकी है कि इसके लिए उनके विचारोंका अवलोकन करना चाहिए; और फिर भी यही कहा जाता है कि जितना हो सके उतना उनके विचारोंको कसौटी पर चढ़ाना चाहिए । उससे यह निश्चय हो
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